Saturday, December 20, 2014

बढ़ा दर्प अभिमान


सत्ता हथियाने से कितना, बढ़ा दर्प अभिमान|
अनाड़ी बन बैठे विद्वान||
अनाड़ी बन बैठे विद्वान|||
कुम्भ प्रेम के फोड़ रहे हैं, मर्यादायें छोड़ रहे हैं,
सामाजिक जीवन की सारी, सीमाओं को तोड़ रहे हैं|
नागरिकों पर लगे चलाने, जड़ता के पाषाण,
अनाड़ी बन बैठे विद्वान||
अनाड़ी बन बैठे विद्वान|||
थोप रहे अनीति की भाषा, ज्ञात न जिन्हें न्याय परिभाषा,
सम्विधान विपरीत व्यक्त वे, करने लगे दबी अभिलाषा|
लोकतंत्र के बिना रहेगी, कहीं नहीं पहचान|
अनाड़ी बन बैठे विद्वान||
अनाड़ी बन बैठे विद्वान|||
अपना कहा बदलने वालो, छल की चालें चलने वालो, 
अवसर के अनुकूल लाभ के, साँचों भीतर ढलने वालो|
भय फैलाने से बन सकते, कभी न विश्व महान| 
अनाड़ी बन बैठे विद्वान||
अनाड़ी बन बैठे विद्वान|||