Sunday, March 15, 2015

ठग राष्ट्रद्रोहियों


ठग राष्ट्रद्रोहियों के उतने हबीब होते,
दौलत पसंद जितने सत्ता करीब होते|
ये सत्य कथ्य पूरा माने भले न कोई,
उपदेश जो सुनाते वे कुछ अजीब होते|
इंकार ख़ूब करिये ये भी कभी न भूलें,
ईमानदार जग में सचमुच गरीब होते|
ये सोच लोकशाही कैसे दफा करेगी, 
सत्ता वही सँवारे जिनके नसीब होते|
कोई न मित्र रिपु है ऐसा उन्हें न मानें, 
जो राजनीति करते वे तो रकीब होते|
ये दौर लोकशाही सम्वाद के लिए है-
वरना 'तुका' करोड़ों ढोते सलीब होते|

Saturday, March 7, 2015

भक्ति पोषक कैद


भक्ति-पोषक कैद के बाहर निकलिए तो,
सत्य से होगा मिलन प्रिय और चलिए तो|
अर्थ के पसरे तिमिर को नष्ट यदि करना-
कुछ पलों को ही सही बन दीप जलिए तो|
प्यास सबकी शान्त करने की अगर इच्छा-
बर्फ -सा सरि के लिए दिनरात गलिए तो|
छाँव देकर तृप्त करना है अगर जग को-
भूमि पर नित वृक्ष -सा परमार्थ फलिए तो|
चाहते यदि ज़िन्दगी प्रिय हो 'तुका' जैसी-
पीड़तों पर प्यार पूरित लेप मलिए तो|