Friday, February 28, 2014

मिली सर्जना शक्ति ...

मिली सर्जना शक्ति ...

जिन्हें चाह थी वे हुए दूर हम से,
मिली सर्जना शक्ति भोगे अलम से|

नहीं खौफ खाये किसी भी वहम से,
सदाचार सीखे प्रकृति के नियम से|

नये दौर की रौशनी देख ली तो, 
शिकायत नहीं रह गई है अदम से|

व्यवस्था जिसे मान पापी रही थी,
जुड़े धर्म के तंतु भी उस अधम से|

उन्हें टोकिये रोकिये जो किसी के,
खरीदें यहाँ वोट काली रकम से| 

जईफी 'तुका' शान से कह रही यूँ ,
नहीं साँस लेना किसी के करम से|

Wednesday, February 26, 2014

सहज संतुलन


कभी दूसरों को सताये नहीं है,
भरे नैन डर से झुकाये नहीं है|

अगर हम तुम्हारे नहीं हो सके तो,
हुए आज तक भी पराये नहीं है|

उन्हें क्या पता पीर में पीर है क्यों,
जिन्होंने कभी दुख उठाये नहीं हैं|

उन्हें रौशनी में अँधेरा दिखे जो,
दृगों को अभी खोल पाये नहीं हैं|

खुली बात सुनते खुली बात कहते, 
इशारे किसी को दिखाये नहीं हैं |

वही शील के मीत होते तुका जो,
सहज संतुलन को गँवाये नहीं हैं|

Wednesday, February 19, 2014

गीत लिखता हूँ गाता हूँ..

जिन शब्दों से शान्ति पनपती, उन्हें सुनाता हूँ,
इंसानों को इंसानों जैसा अपनाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ|| 

खेत खलियानों की आशा, गाँव-गलियों की अभिलाषा,
मौन रह प्रेरित करती जो, दर्द दलने की शुचि भाषा,
सीखता और सिखाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

नैन ये कहीं नहीं झुकते, भाव अनुभाव नहीं रुकते,
पूर्ण ऋण जन्मदायिनी के, जानता हूँ न कभी चुकते|
काव्य कर्त्तव्य निभाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ|| 

कर्म का क्षेत्र विश्वव्यापी, धर्म कहता जिनको पापी,
सूत्र जीवन संवर्धन के, समझते जो न चरण चापी|
चित्त वे सुप्त जगाता हूँ| 
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

काव्य वाणी युग कल्याणी, बोलते जिसे प्रकृति प्राणी,
नित्य उस अनुशासन द्वारा, भेदकर अन्तर पाषाणी|
अमृत रसधार बहाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

Tuesday, February 18, 2014

वो चाह रहा खोजना

वो चाह रहा खोजना संकट निदान है,
जिसके न रही हाथ में सत्ता कमान है|

नायक उसे स्वदेश का जनता बता रही.. 
जो प्यार भरी राह का प्रेरक जवान है|

उसको न रहा बैर है इन्सान से कभी-
जो मान रहा शान से भारत विधान है|

उदघोष यही हो रहा उन्नति बड़ी हुई, 
पर प्राण अभी दे रहा भूखा किसान है|

वो खोज करें आप जो धरती सँवार दे, 
श्रीमान भयाक्रांत तो सारा जहान है|

क्यों बैर बढ़ा गैर सा जब मेल के लिए, 
इन्जील अवेस्ता तुका गीता कुरान है|

Tuesday, February 11, 2014

स्वार्थ के चक्र में...

मंदिरों तक गये मस्जिदों तक गये,
लक्ष्य जाने बिना सूरमा थक गये|

राजवंशी गये पथ नियामक गये,
ताज को छोड़कर धर्म याजक गये|

योग के ढोंग से वक्त के पूर्व ही,
दाँत गल के गिरे बाल सब पक गये|

अर्थ से शक्ति से दूसरों के कभी,
काम आये नहीं बन विधायक गये|

कौन कहता अभी वे अजीवित यहाँ,
शब्द साधक रहे जो कि साधक गये| 

ये 'तुका' विश्व का सत्य है जानिये, 
स्वार्थ के चक्र में प्राण नाहक गये|

Friday, February 7, 2014

जीवन गीत


 इस रंग- विरंगे जीवन में, पतझर है कुछ अवशेष नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

पग-पग इतिहास रचा जाता, कुछ भी तो हाथ नहीं आता,
अपनी कथनी- करनी पर तो, हर ह्रदय हमेशा पछताता| 
जग में परिवर्तन हो न कभी, यह नैसर्गिक सन्देश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर बौद्ध विवेक विचारक ने, गुण शील सुनीति प्रचारक ने,
जो अनुभव करके बतलाया, जन-जन को जन उद्धारक ने|
जिसमें संरचना हो सकती, वह शिव सुन्दर परिवेश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

सबको बहती युग धारा से, लालच की कलुषित कारा से,
बचना संभव जग बीच कहाँ, सच के सिर रक्खे आरा से? 
सबकी गति एक समान यहाँ, अखिलेश विशेष धनेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर साँस जूझती आहों से, दिखता दुख- दर्द निगाहों से,
जितना बनता जो पाक यहाँ, उतना वह भरा गुनाहों से|
जिस पर आया हो क्लेश न वो, लंकेश नहीं अवधेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

उतरना पड़ेगा

शिखर से धरा पर उतरना पड़ेगा,
गहन धूल में ही सँवरना पड़ेगा|

सखे! लोकशाही यही कह रही है,
तुम्हें न्याय पथ से गुजरना पड़ेगा|

भले स्वप्न आते रहें आसमानी,
मगर भूमि ऊपर विचरना पड़ेगा|

अगर राजनैतिक प्रभा देखनी तो,
प्रखर धूप बनकर पसरना पड़ेगा|

सुबह की सुखद वायु के हेतु पहले,
विकट आँधियों में गुजरना पड़ेगा| 

जिन्हें रत्न की कामना है उन्हें तो,
'तुका' सिंधु में भी उतरना पड़ेगा|