Monday, June 23, 2014

वायदों की आँधियाँ


लालची दृग देख पाये कब किसी की खोट,
वायदों की आँधियों ने हैं बटोरे वोट| 

अब नहीं पछताइये, अपने किये पर और;
हो सके तो कीजिये, कल के लिए कुछ गौर|
आ रहे परदेश से, काले करोड़ों नोट, 
वायदों की आँधियों ने हैं बटोरे वोट| 

अब न महगाई कहीं है और भ्रष्टाचार,
ला रही अच्छे दिवस बदली हुई सरकार| 
खाइये बादाम किसमिस कागजी अखरोट,
वायदों की आँधियों ने हैं बटोरे वोट| 

अब उपेक्षित रो रहे शोषित दलित कमजोर,
अर्थवानों ने बनाया इन सभी को ढोर|
चुपचाप सहना सीखिये पड़ रही जो चोट,
वायदों की आँधियों ने हैं बटोरे वोट| 

त्याग को हैं त्याग बैठे भोगवादी लोग,
फैला हुआ हर ओर है बस लूटने का रोग|
चल रही व्यापारियों की अब अनैतिक गोट, 
वायदों की आँधियों ने हैं बटोरे वोट|
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Saturday, June 21, 2014

स्नेह का अंकुरण

क्रूर को क्रूर कहिये पकड़िये सही,
न्याय के बंधनों से जकड़िये सही| 

लोग बेहाल हैं बढ़ रहे खौफ़ से-
नाक अपराधियों की रगड़िये सही| 

अश्रु मत पीजिये शान्ति से धैर्य से,
आप अधिकार के हेतु लड़िये सही|

जुर्म को रोकने के लिए सैनिकों, 
भेड़ियों पर तुरत टूट पड़िये सही| 

चाहते हो सुनाना अगर जुल्म तो,
भीड़- सा एक होके उमड़िये सही|

स्नेह का अंकुरण हो सके विश्व में,
बीज बनकर 'तुकाराम' सड़िये सही|

Sunday, June 15, 2014

"परीक्षा है तगड़ी"


"परीक्षा है तगड़ी" 
ठगी ने जनता की, उधेड़ी है चमड़ी ||
किसे है फिक्र पड़ी?

गेह में छिपे पड़े हैं चोर,
खोजते फिरते चारों ओर|
समस्याये कैसे हों दूर-
विवेकी ऊपर बैठे ढोर|| 
मुसीबत में पगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?

आप भी हुए आप से आप,
रो रहे कितने माई- बाप|
पुण्य जो करते थे बेख़ौफ़-
खूब वे किये जा रहे पाप||
प्रभावी नहीं जड़ी, किसे है फिक्र पड़ी?

हो गये तंत्र-मन्त्र आज़ाद,
मौन हो बैठे वाद-विवाद|
सामने कैसे आयें तथ्य- 
शांत करते सत्ता के स्वाद|| 
प्रगति सारी पिछड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|

भेड़ियों के आगे खरगोश,
हो चुके मनोभाव बदहोश|
अर्थपतियों की रक्षा हेतु-
लोक सत्ता में छाया जोश|| 
परीक्षा है तगड़ी, किसे है फिक्र पड़ी|