Thursday, April 24, 2014

मसीहा सेवकाई का

युगों से राजधानी की वसीयत आपने पायी,
विषैली सोच से उपजी नसीहत आपने पायी,

कराती आदमी से आदमी को दूर जो बोली-
वही शैतानियत प्रेरित शरारत आपने पायी|

न अपने आपको मानो मसीहा सेवकाई का- 
भलों को रौंदने वाली तबीयत आपने पायी|

नहीं जाने सदाशयता दया करुणा भलाई जो, 
वही उदण्डता ध्वंसक जहालत आपने पायी| 

सभी समकक्ष हैं आज़ाद भारत के सभी वासी,
इन्हें क्यों गैर कहने की हमाक़त आपने पायी?

इसे बर्बाद मत करिये धरोहर है बुजुर्गों की, 
हिफ़ाज़त कीजिये इसकी अमानत आपने पायी|

तुका ने है कहा इतना सदा बेखौफ दुनिया से,
नहीं सहकार करने की रिफाक़त आपने पायी|

Sunday, April 20, 2014

दाल ख्याली

क्रूर पहचान काली मिटेगी नहीं,
दुष्ट के हेतु ताली बजेगी नहीं|

रेत के ढेर से स्वर्ण जैसी कभी, 
मूर्ति सुन्दर निराली बनेगी नहीं|

सींचने मात्र से तो किसी हाल में, 
वृक्ष की शुष्क डाली फलेगी नहीं|

लूटती जो मतों को रही देश में,
वो लुटेरी दुनाली चलेगी नहीं|

चेतना की खुली घोषणा है 'तुका',
अर्थ की दाल ख्याली गलेगी नहीं|

Sunday, April 13, 2014

क्रूरता पर चोट


क्रूरता पर चोट करना हो गया मुश्किल,
क्योंकि अब अपराधियों का बोलवाला हँ|
नफरती दुर्गन्ध फैली, सोच बेहद है विषैली, 
संत की चादर यहाँ तो, हो रही है खूब मैली|
धन उगाने में जुटे हैं आधुनिक नेता,
क्योंकि अब व्यापारियों का बोलवाला है|
सज्जनों को घर निकाला, अंकुरों को नोच डाला,
चिंतकों की बुद्धि पर तो, पड़ गया है अर्थ ताला| 
अब पिपासे रक्त के हर मोड़ पर बैठे, 
क्योंकि अब आतंकियों का बोलवाला है|
सभ्यता से रिक्त भाषा, घोर छाई है निराशा, 
गाँव गलियों बीच नगरों, जाति-वर्गों का तमाशा 
अभिनयी सूरत बनाये राष्ट्र अधिकारी,
क्योंकि अब वैशाखियों का बोलवाला है|

दिल्ली दिखे न दूर

लोकतंत्रीय इस आँगन के, बदल रहे दस्तूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर||

कल तक नाम नहीं लेते थे, जो बाबा तेरा,
वे हम सबके के यहाँ जमाने, लगे आज डेरा|
संविधान के आगे उनका, दर्प हुआ काफूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर|| 

लूटतन्त्र के गोरखधंधे, जड़ता पाखण्डी,
छोड़ रहे हथियार द्वेष के, शोषक उद्दंडी| 
वोट शक्ति ने कर डाला है, छल-बल चकनाचूर, 
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर|| 

खोल दिये प्रेरक दरवाजे, शिक्षा ने सारे,
मुश्किल नहीं तोड़ने लगते, अब नभ के तारे|
सहज संघठन संघर्षों से, दिल्ली दिखे न दूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर||

Wednesday, April 9, 2014

सौहार्द वाटिका

पग-पग पर जो किये जा रहा, जन-मन का अपमान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

मानव मूल्यों का हत्यारा, छल बलियों का बना दुलारा,
शील विनय करुणा के घर में, बैर-भाव का रोग उभारा|
जिसके भय से मौन हो गये, बड़े-बड़े विद्वान,
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान|| 

जेठ धूप जैसा वह फैला, दल-दल में छितराये मैला,
बाजारों ने काले धन का, उसके लिए उड़ेला थैला|
स्वार्थ शक्तियाँ चला रही हैं, जिसका छल अभियान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

चिंतन में हैं खींचातानी, करता रहता है मनमानी,
लोकतंत्र के ऊपर हँसता, नहीं आचरण है इन्सानी|
चाह रहा सौहार्द वाटिका, जो करना वीरान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

Thursday, April 3, 2014

तय करो

युग प्रबंधन डोर हो तुम, 
प्रिय नहीं कमजोर हो तुम, 
यह समय अब पूछता है.. 
तय करो किस ओर हो तुम|

इस तरफ तो है कमेरे, 
उस तरफ लाखों लुटेरे,
नफरतों की आग फैली, 
खुद बचाने हैं बसेरे|
तय करो किस ओर हो तुम|

छल वहाँ हैं बल वहाँ है,
दल-दली कौशल वहाँ है,
नय समर्थक शील प्रेमी-
आचरण उज्ज्वल यहाँ है| 
तय करो किस ओर हो तुम|