Saturday, November 24, 2012

एक प्यास हेतु प्यासा गीत :-

आँखों की प्यास,कानों की प्यास|
तृप्त हो सकी न अधरों की प्यास||
प्यास तो आखिर प्यास है प्यास ...

जीवन भरा आँगन मिला,पावन भवन सुहावन मिला,
गोदी लिए माँ ने कहा,लोचन लुभावन लालन मिला| 
रोने की प्यास, सोने की प्यास,
होती थी तब न खोने की प्यास|
आँखों की प्यास,..

ज्योंही हुए सीधे खड़े,रह न सके वहीँ गिर पड़े,
ओंओं सुना त्योंही सभी,गुस्से भरे कुछ-कुछ लड़े| 
दादा की प्यास,दादी की प्यास,
नाना जी और नानी की प्यास|
आँखों की प्यास,...

चलने लगे ढलने लगे,सजने लगे नचने लगे,
आने लगे जाने लगे घर बाहर निकलने लगे|
फूलों की प्यास,झूलों की प्यास,
रहते थी खूब झूलों की प्यास|
आँखों की प्यास,...

इसने कहा उसने कहा,इनको सहा उनको सहा,
चलता रहा गलता रहा,नित्य प्रपात समान बहा| 
खेलों की प्यास,मेलों की प्यास ,
फिर विद्द्या हेतु,जेलों की प्यास|
आँखों की प्यास,...

सपने दिखे नपने दिखे,अपनों में न अपने दिखे,
जो भी दिखे खपने दिखे,सच के हेतु ढपने दिखे| 
जीने की प्यास सीने की प्यास,
प्यासी की आज प्यासी है प्यास|
आँखों की प्यास,...

इनके लिए उनके लिए,हम जी रहे उपवन के लिए,
कविता यही कहती सदा,जी भर जिओ जन-मन के लिए|
यादों की प्यास वादों की प्यास,
कैसे हो पूर्ण म्यादों की प्यास |
आँखों की प्यास,कानों की प्यास,
तृप्त हो सकी न अधरों की प्यास||
प्यास तो आखिर प्यास है प्यास...

Friday, November 23, 2012

मंच का साहित्य से अब क्या रहा नाता,
गीत पढ़िए वे जिन्हें सुन खुश रहे दाता|

कवि लिफाफे का बजन पहचानता,
वह नियति आयोजकों की जानता,
इसलिए पक्षी- विपक्षी राजनेता का-
वह सुरक्षित ख़ूब रखना चाहता हाता|

कल यहाँ से वह वहाँ जब जाएगा,
तब वहाँ तारीफ़ उनकी गाएगा ,
श्रेष्ठ कवि की मान्यता का पात्र वह सच्चा-
जो कि उनके वोट का बढ़वा सके खाता|

जन हितैषी संगठन जो तोड़ दे,
सब ठगों को जेल से जो छोड़ दे,
गाँव-नगरों में बहा दे सोम की धारा-
नागरिक उसको कहेंगे क्यों नहीं ज्ञाता?

मत जगाओ चित्त वह जो सुप्त है,
यह कथा जन चेतना की गुप्त है,
देश में युग बोध हो जब चेतना वर्षा-
तानिए तब रूढ़ि-जड़ता का तुरत छाता|

Thursday, November 22, 2012



सत-असत्य का ध्यान नहीं है,शब्दों का शिव ज्ञान नहीं है|
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

कहाँ लगानी होती यति है,कहाँ बढ़ानी होती गति है?
किस प्रकार बढ़ती पद-मैत्री,लय सरसाती सदसम्मति है|
वह इंसानी भाव भरे करे क्या,जिसमें उर इन्सान नहीं है?
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

जिसने सच को जिया नहीं है,परहित विष को पिया नहीं है|
जिसने अपने कहे हुए को,जीवन भर तक किया नहीं है ||
वह कैसा अन्वेषक होगा, जिसको प्रिय विज्ञान नहीं है| 
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है? 

कहने को वह महामना है,उज्ज्वल पहनावा पहना है|
पर उसको अनुकूल धार के,साथ-साथ अविरल बहना है||
ऐसे लेखन से हो सकता,सफल न्याय अभियान नहीं है| 
वह कैसे सुन्दर लिख सकता,जिसको युग पहचान नहीं है?

Friday, November 16, 2012

शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||| 

मान लिया यह दौर अर्थ का,शासन दिखता है समर्थ का,
लेकिन इन दोनों से उपजा,विज्ञापनी विचार व्यर्थ का ||
विद्द्या बल से हो सकता है,हम सबका का उत्थान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|

हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||

खुलती है जब आँख ज्ञान की,तब दिखती बांछा विधान की,
नियम -उपनियम समझे जाते,दशा न रहती खींच -तान की|
एक साथ परिचर्चा करते,मिल किसान विद्वान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान|| 

लोकतंत्र का शिव विचार है,करना गलती का सुधार है,
वैज्ञानिक विधियों से होता, सड़े -गले का परिष्कार है|
नवशोधों से हरियाली में, बदल गये वीरान|
शिक्षा ने जीवन -उन्नति के,मार्ग किये आसान|
हटाये बड़े-बड़े व्यवधान||

Thursday, November 15, 2012

बंद क्यों संवाद?

बात यह तो सत्य सबको याद है, 
कातिलों की ज़िन्दगी आज़ाद है|

वाद है प्रतिवाद है उन्माद है,
धर्म है तो बंद क्यों संवाद है?

न्याय की सम्भावना किनसे करें,
कौन उजड़े ठौर पर आवाद है?


सृष्टि के प्रारम्भ से होती रही, 
वेदना की अनसुनी फरियाद है|

आज करुणा नीर नैनों में कहाँ,
मौम-सा उर हो चुका फौलाद है| 

लोकतांत्रिक सोच कैसे हो 'तुका',
जातियों की बद रही तादाद है |

Tuesday, November 13, 2012

तिमिर के बीच रहकर रौशनी के हेतु जीने का|
कहा जाता नहीं अब तो किसी से दर्द सीने का|| 

इसे मत भूल जाओ विश्व का इतिहास कहता है, 
सुनहरे दीपकों में तेल है श्रम के पसीने का|

उन्हें सम्मान देकर कौन -सी चाहत संजोये हो,
कि जिनका शौक है इंसानियत का रक्त पीने का||

उसी की नवप्रभा से कुछ प्रकाशित लोग हो सकते,
न होता रंग है बदरंग किंचित जिस नगीने का|

यहाँ जो बौद्ध हिन्दू जैन मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
सभी को ख्याल रखना है मनुष्यों के करीने का|

यही तो विश्व की सुख- शान्ति के हित में जरूरी है,
नहीं उपहास करना है किसी के भी सफीने का|

किसी की बात को सुनकर भड़कना छोड़िये अबतो,
'तुका' मतलब समझना चाहिये काशी-मदीने का|


दीपमालिका के स्वागत में,नभ ने मोती वारे हैं|
जग-मग,जग-मग दीपक जलते,लगते शुभ्र सितारे हैं||

समरसता सहकार शील का,वातावरण सुहाना है|
दसों-दिशाओं में सद्भावी,गुंजित मोहक गाना है||
फुलझड़ियों की चमक-दमक से,शोभित सब गलियारे हैं|
जग-मग,जग-मग दीपक जलते, लगते शुभ्र सितारे हैं||

अमा निशा पर विजय पताका,दीपों ने फहरायी है|
युवक युवतियाँ बालक बृद्धों,पर उमड़ी तरुणायी है||
दीपों के अविरल प्रकाश से,ज्योतिर्मय घर-द्वारे हैं|
जग-मग,जग-मग दीपक जलते,लगते शुभ्र सितारे हैं||

हर्षित मन से सभी दे रहे,सबको पर्व बधाई भी|
भेज रहे हैं एक दूसरे,हेतु विशेष मिठाई भी||
खील बताशे सजे खिलौने, दिखते सरस दुलारे हैं |
जग-मग,जग-मग दीपक जलते,लगते शुभ्र सितारे हैं||

Friday, November 9, 2012


ज्योति पर्व का अर्थ यही है,अन्धकार छट जाये|
स्वार्थ सिद्धि दुर्वृत्ति व्यक्ति के,अंतर से हट जाये||

समरसता के दीप सर्वथा,वह प्रकाश फैलायें,
जिनके कारण दसों दिशायें,ज्योतिर्मय हो जायें||
नैतिकता के परिपालन का,प्रेम पाठ रट जाये|
स्वार्थ सिद्धि दुर्वृत्ति व्यक्ति के,अंतर से हट जाये||

आहें व्यथित कराहें सबकी,भलीभाँति पहचानें |
अपने ही समकक्ष सर्वथा,हर मानव को मानें||
भेद -भाव की दूषित खाई,यथाशीघ्र पट जाये|
स्वार्थ सिद्धि दुर्वृत्ति व्यक्ति के,अंतर से हट जाये||

समझ सकें सद्धर्म मर्म को,दर्प न मन में लायें|
सहकारी सहयोग सभ्यता,सदाचार अपनायें||
सर्जन पथ से निष्क्रियता का,दुष्प्रभाव घट जाये|
स्वार्थ सिद्धि दुर्वृत्ति व्यक्ति के,अंतर से हट जाये||


युगीन गीत 
दीप-सा जल के ---

सुन सको तो फिर सुनो,संवेदना कवि की,
कब तक सहोगे मार तुम अन्याय की?

आदमी हो आदमी का अर्थ तो जानो,
ज़िन्दगी के लक्ष्य को स्वयमेव पहचानो,
जो सुगन्धित जग करे,उसको सुमन कहते-
भर पेट चरने की नियत चौपाय की|
कब तक सहोगे मार तुम अन्याय की?

आग जैसी धूल पर जो पैर चलते हैं,
बुद्धिबल से वे सभी अवरोध दलते हैं,
वे सहज ही खोज लेते मार्ग जीवन के-
जिनको रही सुधि स्वत्व की अभिप्राय की|
कब तक सहोगे मार तुम अन्याय की?

जो किसी से दान में उत्थान पाते हैं,
वे उसी की स्वस्ति संयुत गीत गाते हैं,
बुदबुदायें यों लगे ज्यों खोलने से भी-
खुलती न खिड़की ज्ञान के संकाय की|
कब तक सहोगे मार तुम अन्याय की?

एक पल की साधना भी व्यर्थ क्यों जाये,
जो करे सत्कर्म वो नव मंज़िलें पाये,
विश्व उसकी कार्य शैली याद रखता जो-
दीप-सा जल के तज सके अधिनायकी|

Monday, November 5, 2012


एक समसामयिक गीत इसे मिलकर गुनगुनाइये:-

जिन हाथो में सौंप रहे हो, तुम अपनी तकदीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर||
उन्होंने किये पाप गंभीर|||

साठ वर्ष तक सुविधाभोगी,भोगे भोग हो गये रोगी,
देश गर्त में डुबो चुके वे, जो बनते उत्थान प्रयोगी|
प्रगति विरोधी जिन पैरों में,जड़ता की जंजीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर||
उन्होंने किये पाप गंभीर|||

एक फ़िक्र उनको सत्ता की,मतदाताओं के छत्ता की, 
यदपि आर्त भाव से गूंजे,विकल व्यथा पत्ता-पत्ता की|
ऐसे में भी बना रहे जो,शोषण से जागीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर||
उन्होंने किये पाप गंभीर|||

अवसर है इनको पहचानो,इनका बातें सच मत मानो,
इन्हें सुहाती काली पूँजी,इनको मानव दुश्मन जानो|
हर चौराहे पर लटकी है,जिन-जिन की तस्वीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर|
उन्होंने किये पाप गंभीर||
उन्होंने किये पाप गंभीर|||

Saturday, November 3, 2012

बिना संकोच दो पल वे चले जाते सताते हैं|
किसी के याद में सपने घने आते सताते है||

सुनाऊ दर्द की ज्वाला बताओ कौन समझेगा,
यहाँ के लोग वैभव की कथा गाते सताते हैं|

हमेशा पास जो रहते जिन्होंने दोस्त माना वे,
व्यवस्था से प्रताड़ित मित्र के नाते सताते
हैं|

गरीबी की महामारी किये है चुप गरीबो को ,

मगर धनवान को भी बैंक के खाते सताते हैं|

जिन्हें सूरत किसी की खींच अपनी ओर लेती हो,
उन्हें सीरत नहीं बस अंग प्रिय भाते सताते हैं|

कभी नजदीक आने के लिए जो यत्न करते थे,
सुना है वे 'तुका' को आँख दिखलाते सताते हैं|

Thursday, November 1, 2012

प्रार्थना करना उसी की,
जो कि दायक हो,
याचना जिस द्वार से टाली नहीं जाये|

आज जो दानी छपे अखबार में,
बेच सकते वे तुम्हें बाजार में|
माँगना वरदान उससे,जो कि लायक हो,
रिक्त जिसके हाथ से थाली नहीं जाये|

याचना जिस द्वार से टाली नहीं जाये||

रार को क्या मान मिलता है कहीं?
प्यार से जग में बड़ा कुछ भी नहीं|
भावना चुनना वही जो,पथ प्रणायक़ हो,
जीभ तक विष से भरी प्याली नहीं जाये|
याचना जिस द्वार से टाली नहीं जाये ||

फूल शूलों से भला डरते कहाँ,
वे महकते हैं वहाँ रहते जहाँ|
कामना वो ही भली जो नय सहायक़ हो,
बाग से बाहर कभी माली नहीं जाये|
याचना जिस द्वार से टाली नहीं जाये|