Friday, November 23, 2012

मंच का साहित्य से अब क्या रहा नाता,
गीत पढ़िए वे जिन्हें सुन खुश रहे दाता|

कवि लिफाफे का बजन पहचानता,
वह नियति आयोजकों की जानता,
इसलिए पक्षी- विपक्षी राजनेता का-
वह सुरक्षित ख़ूब रखना चाहता हाता|

कल यहाँ से वह वहाँ जब जाएगा,
तब वहाँ तारीफ़ उनकी गाएगा ,
श्रेष्ठ कवि की मान्यता का पात्र वह सच्चा-
जो कि उनके वोट का बढ़वा सके खाता|

जन हितैषी संगठन जो तोड़ दे,
सब ठगों को जेल से जो छोड़ दे,
गाँव-नगरों में बहा दे सोम की धारा-
नागरिक उसको कहेंगे क्यों नहीं ज्ञाता?

मत जगाओ चित्त वह जो सुप्त है,
यह कथा जन चेतना की गुप्त है,
देश में युग बोध हो जब चेतना वर्षा-
तानिए तब रूढ़ि-जड़ता का तुरत छाता|

No comments:

Post a Comment