Saturday, January 30, 2016

हम भूख मिटायेंगे



हम भूख मिटायेंगे, विश्वास जगायेंगे|
परित्याग अर्चना से, संसार सजायेंगे||
संकल्प हमारा है, परहित में जीने का,
अमृत की बात नहीं, विष प्याले पीने का|
सेवापथ पर चलके, सहकार बढ़ायेंगे| 
परित्याग अर्चना से, संसार सजायेंगे||
जो भूखे-प्यासे हैं, बोझों के मारे हैं,
वे सब सच्चे बच्चे, परमेश दुलारे हैं| 
उन सबकी खुशियों में, सद्सुमन खिलायेंगे|
परित्याग अर्चना से, संसार सजायेंगे||
अब निकल पड़े घर से, सन्यासी -सा मानो,
धन-दौलत छोड़ चुके, तन दान दिया जानो|
जीवन पोषक जल की, रसधार बहायेंगे| 
परित्याग अर्चना से, संसार सजायेंगे||

Saturday, January 16, 2016

जन चेतना


कवि को न नींद आई अच्छे-बुरे दिनों में,
जन चेतना जगाई अच्छे-बुरे दिनों में|
टूटे हुये दिलों की कमजोर आदमी ने,
की नित्य रहनुमाई अच्छे-बुरे दिनों में|
जिस पर न दाग काला कोई लगे उसी की,
होती बड़ी बड़ाई अच्छे-बुरे दिनों में|
रिश्ता कभी न ऐसा बनता कभी किसी से,
झेले न जो जुदाई अच्छे-बुरे दिनों में|
इतिहास कह रहा है सज्जन सदाशयी को,
देनी पड़ी सफाई अच्छे-बुरे दिनों में|
यूँ तो तुका सभी के साथी रहे जहाँ में,
पर की न बेवफाई अच्छे-बुरे दिनों में|