Thursday, January 30, 2014

हर साँस जूझती आहों से

इस रंग- विरंगे जीवन में, पतझर है कुछ अवशेष नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

पग-पग इतिहास रचा जाता, पर हाथ नहीं कुछ भी आता,
अपनी कथनी- करनी पर तो, हर ह्रदय हमेशा पछताता| 
जग में परिवर्तन हो न कभी, यह नैसर्गिक आदेश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर बौद्ध विवेक विचारक ने, गुण शील सुनीति प्रचारक ने,
जो अनुभव करके बतलाया, जन-जन को जन उद्धारक ने|
जिसमें संरचना हो सकती, वह शिव सुन्दर परिवेश नहीं|
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

सबको बहती युग धारा से, लालच की कलुषित कारा से,
बचना संभव जग बीच कहाँ, सच के सिर रक्खे आरा से? 
सबकी गति एक समान यहाँ, अखिलेश विशेष धनेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

हर साँस जूझती आहों से, दिखता दुख- दर्द निगाहों से,
जितना बनता जो पाक यहाँ, उतना वह भरा गुनाहों से|
जिस पर आया हो क्लेश न वो, लंकेश नहीं अवधेश नहीं| 
हर ओर विसर्जन हावी है, जिसमें मधु मौसम लेश नहीं||

Tuesday, January 28, 2014

लोकतंत्र पैगाम

नत मस्तक हो संविधान को, पहले करो सलाम,
यही है लोकतंत्र पैगाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम||

कभी न छोड़ो सज्जनता को, तजो सोच से दुर्बलता को,
मिला अजय अधिकार वोट का, गले लगाओ निर्भयता को|
सदाचार के सहयोजन से, रखिये उच्च ललाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम|| 

कहें वक्त जो उसको जानो, नहीं बेबजह जिद को ठानो,
बड़ी शक्ति है नैतिकता में, इसे आचरित कर पहचानो|
अलगावों से नहीं मिलेंगे, सरस सुखद परिणाम,
यही है लोकतंत्र पैगाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम|| 

समझ बढ़ाओ प्रिय! इन्सानी, अब छोड़ो- छोड़ो शैतानी,
फिर अतीत के राग न छेड़ो, नहीं सफल होते अभिमानी|
बहुत हो चुका और न करिये, अपने को बदनाम,
यही है लोकतंत्र पैगाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम|| 

जो कर सकते वही बोलिये, बंद न रखिये नैन खोलिये,
सर्जनात्मक सोच बना के, प्राणवायु- सा सदा डोलिये|
युवां देश के कर सकते हैं, भारत को अभिराम, 
यही है लोकतंत्र पैगाम|
यही है लोकतंत्र पैगाम||

Sunday, January 19, 2014

आज देश के मुख्यासन को, छीन रहा शैतान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

पूँजीवादी साथ खड़े हैं, धर्मों के पसरे झगड़े हैं,
सत्ता लोभी सौदायी ने, बाँटे आकर्षक टुकड़े हैं|
क्रूरों की सेवा में उतरे, बड़े- बड़े विद्वान, 
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

बूढ़े भूतकाल को गाते, युवा भविष्य हेतु घबराते,
वर्तमान की आपाधापी, देख प्रौढ़ आँसू छलकाते|
परख तमाशा रहे विवेकी, ज्ञानवान गुणवान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान? 

न्याय- नीतियों के रखवाले, अपने मुँह पर ताले डाले,
शिव सुन्दर सच उद्घोषों के, पड़े यहाँ पर अब हैं लाले|
खींचतान में उलझ गया है, अपना राष्ट्र विधान,
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?
कहाँ हैं प्राणवान इन्सान?

Saturday, January 18, 2014

दरिंदे हठधर्मी शैतान||

धूमिल करना चाह रहे हैं, संविधान की शान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||

रंग-विरंगे झंडे लेके, जीवन मूल्य उतारे फेके,
संवेदन शून्यों के आगे, लोलुपता ने मत्थे टेके|
चाह रहे वे सत्ता जिनको, रंच नहीं है ज्ञान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||

चौराहों के ठेकेदारी, बढ़ा रही है मारामारी,
सारी जनसंपत्ति देखिये, लगे बेचने भ्रष्टाचारी|
क्रूर दलाल तुले करने को, भारत को वीरान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||

स्वार्थसिद्धि का गूँजे नारा, सत्य हो रहा है बेचारा,
स्नेह सहारा छीना हमारा, आज गुजारा कहाँ तुम्हारा?
गुंडों के आगे हैं बौने, ज्ञानवान गुणवान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
धूमिल करना चाह रहे हैं, संविधान की शान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
रंग-विरंगे झंडे लेके, जीवन मूल्य उतारे फेके,
संवेदन शून्यों के आगे, लोलुपता ने मत्थे टेके|
चाह रहे वे सत्ता जिनको, नहीं रंच भर ज्ञान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
चौराहों की ठेकेदारी, बढ़ा रही है मारामारी,
सारी जनसंपत्ति देखिये, लगी बेचने भ्रष्टाचारी|
क्रूर दलाल तुले करने को, प्रिय भारत वीरान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
स्वार्थसिद्धि का गूँजे नारा, सत्य हो रहा है बेचारा,
स्नेह सहारा छिना हमारा, आज गुजारा कहाँ तुम्हारा|
गुंडों के आगे बोने है, ज्ञानवान गुणवान, 
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||53
धूमिल करना चाह रहे हैं, संविधान की शान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
रंग-विरंगे झंडे लेके, जीवन मूल्य उतारे फेके,
संवेदन शून्यों के आगे, लोलुपता ने मत्थे टेके|
चाह रहे वे सत्ता जिनको, नहीं रंच भर ज्ञान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
चौराहों की ठेकेदारी, बढ़ा रही है मारामारी,
सारी जनसंपत्ति देखिये, लगी बेचने भ्रष्टाचारी|
क्रूर दलाल तुले करने को, प्रिय भारत वीरान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
स्वार्थसिद्धि का गूँजे नारा, सत्य हो रहा है बेचारा,
स्नेह सहारा छिना हमारा, आज गुजारा कहाँ तुम्हारा|
गुंडों के आगे बोने है, ज्ञानवान गुणवान, 
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||53


धूमिल करना चाह रहे हैं, संविधान की शान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
रंग-विरंगे झंडे लेके, जीवन मूल्य उतारे फेके,
संवेदन शून्यों के आगे, लोलुपता ने मत्थे टेके|
चाह रहे वे सत्ता जिनको, नहीं रंच भर ज्ञान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
चौराहों की ठेकेदारी, बढ़ा रही है मारामारी,
सारी जनसंपत्ति देखिये, लगी बेचने भ्रष्टाचारी|
क्रूर दलाल तुले करने को, प्रिय भारत वीरान,
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||
स्वार्थसिद्धि का गूँजे नारा, सत्य हो रहा है बेचारा,
स्नेह सहारा छिना हमारा, आज गुजारा कहाँ तुम्हारा|
गुंडों के आगे बोने है, ज्ञानवान गुणवान, 
दरिंदे हठधर्मी शैतान|
दरिंदे हठधर्मी शैतान||53

Wednesday, January 15, 2014

खुशामद बड़े काम आती उसी से

न होती बुरी बात वो जो खरी है,
बड़े से बड़ों में जहालत भरी है| 

कई निर्धनों की चुने रहनुमा ने,
करा दी अकारण तबीयत हरी है|

मुसीबत मिटाते- मिटाते उन्होंने,
हमारी तुम्हारी मुसीबत करी है|

उन्होंने बनाया उन्हें राजनेता,
बिछाते रहे जो कि उनकी दरी है| 

खुशामद बड़े काम आती उसी से ,
मिली रहजनों को यहाँ रहवरी है|

उसी भावना को तुका जी रहा है,
कभी मौत से भी नहीं जो डरी है|

Tuesday, January 14, 2014

यहाँ आँसू बहाने

यहाँ आँसू बहाने के सिवा क्या हाथ आता है?
वहाँ आँखें छिपाने के सिवा क्या हाथ आता है?

प्रिये! इन्सान का दर्जा मिला तो प्यार फैलाओं,
भला मौका गँवाने के सिवा क्या हाथ आता है?

नहीं दौलत किसी को चैन दे पाती जरा सोचो,
मिला जीवन मिटाने के सिवा क्या हाथ आता है?

जिन्हें शालीन पर्दे पर सजाकर सामने लाते,
उन्हें से दौलत कमाने के सिवा क्या हाथ आता है?

किया करते डकैती जो ठगी रुतबा दिखाने को,
उन्हें जिल्लत उठाने के सिवा क्या हाथ आता है?

लिखा करते तुका जो छंद मानव के हितैषी हो,
उन्हें खुद को रुलाने के सिवा क्या हाथ आता है?

Friday, January 10, 2014

किसके धन पर किसके बल पर, कुचले गये गरीब,
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

इनका दावा राष्ट्रभक्त हैं, वे कहते आज़ादी दी है,
इन दोनों के सिवा बताओ, किसने दी ये बर्बादी है? 
शासन सत्ता हथियाने को, खुद बन गये रकीब,
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

जाति- वर्ग की ठेकेदारी, धीरे- धीरे फैलायी है,
लाचारों को जूठन देके, धर्म पताका फहरायी है|
ऐसे पेट निकल आये हैं, सूरत हुयी अजीब, 
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

पूँजीपतियों को सुविधायें, शक्तिशालियों की मनमानी,
विज्ञापनदाता बन बैठे, कर्ण -दधीच सरीखे दानी| 
ठग्गू ढोंगी पढ़ा रहे हैं, अच्छा- बुरा नसीब,
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

आज लोकशाही शासन में, जिनको मिलने मान लगा है,
उनके साथ धर्मतन्त्रों ने, किया अनैतिक जुल्म दगा है|
भोगवादियों ने शोषण की, अपना ली तरकीब, 
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

वक्त कह रहा मजलूमों से, वोट्शक्ति की क्षमता जानो,
कौन आपके हितवर्धक हैं, उन्हें आचरण से पहचानो|
हारे-थके किसान कमेरे, दुख में पड़े अतीब| 
समझिये किसके कौन करीब?
समझिये किसके कौन करीब?

Thursday, January 9, 2014

भला इन्सान....

 

किताबों से सुलभ इंसान को जो ज्ञान होता है,
कभी उसकी बदौलत वो नहीं विद्वान होता है|

किसी से प्यार करना तब नहीं आसान होता है,
वदन बलवान होता जब ह्रदय नादान होता है|

समय के साथ दुनियावी थपेड़ों के प्रहारों की,
सचेतन मार खाने से विरत अज्ञान होता है|

प्रगति प्रेमी बटोही के लिए यह सूत्र जीवन का,
बिना अवरोध क्या कोई सफल अभियान होता है?

जहाँ तक हो सके इसको हमेशा ध्यान में रखिये,
जिसे नैतिक समझ होती न वो धनवान होता है| 

यही अनुभूति जीवन की यही निष्कर्ष चिंतन का, 
प्रखर विद्वान तो बेहद भला इन्सान होता है|

फकीरों की 'तुका' पहचान करने को यही काफी, 
जिसे निष्पृह सभी से प्यार वो गुणवान होता है|

Monday, January 6, 2014

आज भरोसा टूट रहा



सत्ता में वह नहीं इरादा, जो परपीर निवारण करता,
अत्याचारी संघठनों से, दिखे प्रशासन डरता-डरता|

बाजारों में लूट मची है, दो के बीस बनाये जाते,
हालातों से उपजे आँसूं ,नहीं दृगों के बाहर आते|

आज भरोसा टूट रहा है, संरक्षण की बाहों का,
धर्मतंत्र अवरोध बना है, लोकतंत्र की राहों का|

राजनीति की रीति हो गई, लोकलुभावन नारों की,
भीड़ लगी है हाथ पसारे, गिनती नहीं कतारों की|

उनको फिक्र गरीबों की है, इनको दौलतवालों की,
डसने को तैयार खड़ी है, पग-पग टोली व्यालों की| 

कचरों के ढेरों में कितने, बच्चे भूख मिटाते है,
नग्न वदन नालों पर लाखों, कैसे रात बिताते हैं?

सच्चाई को नहीं देखते, यहाँ वोट के व्यापारी,
किस दुर्गति में पहुँचा दी है, भोगवादियों ने नारी|

Friday, January 3, 2014

आवाज़ हमारी

आवाज़ हमारी सुनते ही, जो खिलते थे फूलों जैसा,
वे आज समझते हैं हमको, घायल करते शूलों जैसा|

दुत्कार जिन्होंने सदियों से जिनकी झेली सेवा करके,
वे लोग उन्हें अब सत्ता के, हित लगते माकूलों जैसा|

ये सत्य उन्हें बेचैन करे, जो सुविधाओं के भोगी हैं,
आभास खौफ का होते ही, हिल जाते हैं चूलों जैसा| 

इतिहास यही समझाता है, आने वाले कल के हित में,
साहित्य बिना हो जाता है, जीवन लँगड़े- लूलों जैसा| 

अनुशासनहीन विचारों के, सत्ता पर काबिज होने से ,
सुख-चैन कहाँ जनता पाती, दुख होता हैं भूलों जैसा|

वो काव्य तुका शिव होता जो, परमार्थ भावनायें लेके,
निष्पक्ष प्रबोधन से सबको, अपनाता मकबूलों जैसा|

Thursday, January 2, 2014

चौदह का गीत

जनसाधारण लोग देश के, चाह रहे अधिकार,
उपेक्षित करने लगे विचार|
उपेक्षित करने लगे विचार||

जो करते हैं धोखेबाजी, वे ही करें फैसले काजी,
मजलूमों की पीड़ाओं को, सुनके बरसाते नाराज़ी|
ऐसों का अनिवार्य हो गया, अब करना प्रतिकार,
उपेक्षित करने लगे विचार|
उपेक्षित करने लगे विचार||

अपने मत का अभिमत जानें, झूठ-सत्य के स्वर पहचानें,
सम्विधान सम्वाद सिखाता, नहीं अकारण जिद को ठानें|
लोकतन्त्र ने बना दिया है, हमें एक परिवार, 
उपेक्षित करने लगे विचार|
उपेक्षित करने लगे विचार||

दिल्ली ने दिल है दहलाया, लोकसभा निर्वाचन आया,
भूखे- प्यासे मजलूमों ने, राजनीति में पैर बढ़ाया|
मठाधीशियों से मुकाबला, करना है स्वीकार, 
उपेक्षित करने लगे विचार|
उपेक्षित करने लगे विचार||

न्यायनीति के सजग सिपाही, लोकतंत्र के सच्चे राही,
सत्ता उनके पास न जाये, जो करते रहते मनचाही|
सकल प्रशासन को देना है, नव्य सुधार निखार, 
उपेक्षित करने लगे विचार|
उपेक्षित करने लगे विचार||