परायी पीर का जिसने ज़रा अनुभव किया होगा,
सरे बाज़ार में उसने दमन का विष पिया होगा|
नहीं वो दूर रह सकता कभी सद्भावनाओं से,
स्वजीवन शायरों जैसा स्वतः जिसने जिया होगा|
जमाने में जिसे इन्सान का दर्जा मिला उसने,
किसी के प्राण लेने को नहीं खंजर लिया होगा|
जिसे कर्तव्य मानव के पता हैं वह किसी की भी,
मलिनता दूर करने को खड़ा एलानिया होगा|
जहाँ में प्यार की खुशबू लुटाता जो चला आया,
समझिये आदमी वो एशियाई पूर्विया होगा|
यही पहचान है कवि की 'तुका' मत भूल जाना ये,
गरल पीकर ज़माने को दिया ज्योतित दिया होगा|
सरे बाज़ार में उसने दमन का विष पिया होगा|
नहीं वो दूर रह सकता कभी सद्भावनाओं से,
स्वजीवन शायरों जैसा स्वतः जिसने जिया होगा|
जमाने में जिसे इन्सान का दर्जा मिला उसने,
किसी के प्राण लेने को नहीं खंजर लिया होगा|
जिसे कर्तव्य मानव के पता हैं वह किसी की भी,
मलिनता दूर करने को खड़ा एलानिया होगा|
जहाँ में प्यार की खुशबू लुटाता जो चला आया,
समझिये आदमी वो एशियाई पूर्विया होगा|
यही पहचान है कवि की 'तुका' मत भूल जाना ये,
गरल पीकर ज़माने को दिया ज्योतित दिया होगा|