Friday, July 31, 2015

जिन्हें है सत्ता का अभिमान


गाली देना गरल उगलना, अब उनकी पहचान|
जिन्हें है सत्ता का अभिमान||
जिन्हें है सत्ता का अभिमान|||
तर्क नहीं दिखता बातों में, बेहद जहर भरा आतों में,
पूरी क्षमता लगा रहे हैं, नफरत पोषित उत्पातों में|
फैलाने पर तुले हुये हैं, वे जड़ता अज्ञान| 
जिन्हें है सत्ता का अभिमान||
जिन्हें है सत्ता का अभिमान|||
लेकर पूरा खर्चा- पानी, बदले में करते मनमानी,
शैतानी की दूषित वानी, कही जा रही है विज्ञानी|
खींच-तान के यत्नों से वे, करते निज उत्थान|
जिन्हें है सत्ता का अभिमान||
जिन्हें है सत्ता का अभिमान|||
खपा दिये जो जीवन सारा, उनको बना दिया बेचारा,
गाँव-शहर के चौबारों पर, गूँज रहा जय का जयकारा|
सीधे -साधे इन्सानों का, वे करते अपमान| 
जिन्हें है सत्ता का अभिमान|| 
जिन्हें है सत्ता का अभिमान|||

Thursday, July 30, 2015

शब्द की शक्तियों



दीप बुझते रहे हम जलाते रहे,
रौशनी से भरे गीत गाते रहे|

फूल तो फूल है सैकड़ों शूल भी,
कंठ से मुस्कराकर लगते रहे|

मौसमों की कड़ी मार सहते हुये,
राष्ट्र को गेह जैसा सजाते रहे|

रोज सामर्थ्य से भी अधिक जानिये,
बोझ हारे -थकों के उठाते रहे|

शब्द की शक्तियों से करोड़ों तुका,
सुप्त मानव हमेशा जगाते रहे|

Monday, July 13, 2015

ये नजारा आम है

ये नजारा आम है आजाद हिन्दुस्तान में,
दाम करता काम है आज़ाद हिंदुस्तान में|

धर्म के उपदेश देने का असर इतना हुआ,
संत भी बदनाम है आज़ाद हिन्दुस्तान में|

रौशनी धन शक्तियों के गेह में पसरी कहे,
स्वर्ण जैसी शाम है आज़ाद हिन्दुस्तान में|

 लोग ऐसा कह रहे सुन लीजिए श्रीमान जी,
एक ही गुलफाम है आज़ाद हिन्दुस्तान में|

सोचिये हर क्षेत्र में आई गिरावट क्यों तुका,
स्वार्थ का संग्राम है आज़ाद हिन्दुस्तान में|

Sunday, July 12, 2015

झेलना सीखो कुछ सन्ताप|

अगर आपको सच्चाई से, करना मेल-मिलाप,
झेलना सीखो कुछ सन्ताप|
झेलना सीखो कुछ सन्ताप||
गुणी नहीं थे उनके जैसे, पर सुकरात जिये थे कैसे,
गलीलियों के जीवन हन्ता, अति मूरख थे ऐसे-वैसे|
सत्ता की काली करतूतें, सब तो कहें न पाप,
झेलना सीखो कुछ सन्ताप|
झेलना सीखो कुछ सन्ताप||
शिव ने पिया गरल जब सारा, बही प्रेम की तब शुचि धारा,
प्रकृति प्रदत्त नियम ये समझो, नहीं प्रकाश तिमिर से हारा|
युग प्रबोधकों की होती है, सबसे न्यारी छाप,
झेलना सीखो कुछ सन्ताप|
झेलना सीखो कुछ सन्ताप||
सन्त कबीरा ने सब खोया, मीरा, शैली, फैज न रोया,
चेतनता जाग्रत जो करता, वह जीवन में रंच न सोया|
सच्चाई को सिवा सत्य के, कौन सका है माप?
झेलना सीखो कुछ सन्ताप|
झेलना सीखो कुछ सन्ताप||

Saturday, July 11, 2015

सभी के साथ रहते हैं

सभी के साथ रहते हैं सभी की बात कहते हैं,
मिले अनुभूतियों से जो वही जज़्बात कहते हैं|

सरलता से भरा जीवन सहजता से भरी वाणी,
सरसता बाँटते फिरते नहीं अज्ञात कहते हैं|

हमें इतिहास है मालूम बेहद फिक्र कल की भी,
मगर इस दौर के देखे हुये हालात कहते हैं|

कलम के कर्म को जाना कलम का मर्म पहचाना,
सहे दुख- दर्द पर अपने नहीं आघात कहते हैं|

सतत संघर्ष के कारण सजी सँवरी दिखे दुनिया,
जिन्हें आता महज रोना उन्हें नवजात कहते हैं|

तुका ने तो किसी को भी कभी बैरी नहीं माना,
ह्रदय से जो उमड़ती वो सरस बरसात कहते हैं|

Saturday, July 4, 2015

परमार्थ जी रहे

परमार्थ जी रहे जो इन्सान ज़िन्दगी को,
वो दूर भी किये है अपनी सदा कमी को|
आसान तो बहुत है उपदेश नित्य देना,
स्वीकारना कठिन है सद्धर्म आदमी को|
व्यापार ने बनाये दो नम्बरी करोड़ों,
कोई नहीं दिखाता काली लिखी वही को|
ये अर्थ का जमाना यूँ सत्य को न समझे,
ज्यों भूलने लगे अब नेकी तथा बदी को|
साहित्य साधना में निज दर्द को भुला के,
हर दौर में 'तुका' तो देता रहा खुशी को|