Thursday, October 31, 2013

आचरित गीत



कवि ने शब्दशक्ति से खोले, युगप्रबोध के नैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

सबको अपनों -सा पहचाना, नहीं भेद- भावों को माना,
उपेक्षितों घर आना- जाना, जो भी भोज मिला वह खाना|
जीवन भर परार्थ कृत्यों को, किया बंधु दिन-रैन, 
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

इस दुनिया को इंसानों ने, साधक चिंतक विद्वानों ने,
रहने योग्य समाज बनाया, शील विनय से गुणवानों ने|
तार्किकता से सदा मिटाया, जड़ता मूलक दैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

वर्तमान जीवन विज्ञानी, तजी धारणायें पाषाणी,
सर्वोदयी नीति अपनायी, सोच बनायी है कल्याणी| 
संवैधानिक विधि से पकड़ी, लोकतंत्र की गैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन| 
दिया है चिंतन का सुख-चैन||

Wednesday, October 23, 2013

लोकतंत्र का राज..

 लोकतंत्र का राज..

गाँव-शहर की गली-गली में, गूँज रही आवाज़,
बनायें समता परक समाज|
बनायें समता परक समाज||

बहुत हो चुकी खींचातानी, चोर-लुटेरों की मनमानी,
अब तो दैनंदन जीवन में, दखल दे रहे ठग अज्ञानी|
भौतिकता ने नैतिकता का, छीन लिया है ताज,
बनायें समता परक समाज|
बनायें समता परक समाज||

सत्ता करती नहीं समीक्षा, अनाचार दिलवाये दीक्षा,
शब्दशक्ति को देनी होगी, न्यायनीति के हेतु परीक्षा|
टुकड़ों टुकड़ों में न बटेगा, युवा राष्ट्र में आज|
बनायें समता परक समाज|
बनायें समता परक समाज||

अच्छे कार्य कदापि न टालें, खुद सँभलें जनतंत्र सँभालें, 
वैज्ञानिक साँचों में अपने, वर्तमान जीवन को ढालें|
हमें सुरक्षित रखना ही है, लोकतंत्र का राज,
बनायें समता परक समाज|
बनायें समता परक समाज||

तुकाराम वर्मा

Friday, October 11, 2013

"सर्वोदय नवनीत"

"सर्वोदय नवनीत"

प्रकृति प्रदर्शन बीच गूँजने, लगा सरस संगीत,
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||

चारों ओर सुखद हरयाली, नैसर्गिक छवि भव्य निराली,
खेतों में दिखती स्वर्णिम-सी, पके धान की डाली-डाली|
अरमानों के शुभागमन की, साफ दिख रही जीत| 
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|| 

नभचर जलचर थलचर गाते, एकसाथ आनन्द मनाते,
बैर-भाव का गया ज़माना, सब सबको अब हैं अपनाते|
अपनेपन का गौरव बिखरा, सब लगते हैं मीत| 
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|| 

सच्चे लोकतन्त्र अनुयायी, समझें सम्विधान प्रभुतायी,
ज्यों मौसम है सर्वहितैषी, त्यों विकास हो जन सुखदायी|
अबतो सबको देना ही है, सर्वोदय नवनीत| 
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत|
लुटाने लगी शरद ऋतु प्रीत||