कवि ने शब्दशक्ति से खोले, युगप्रबोध के नैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन|
दिया है चिंतन का सुख-चैन||
सबको अपनों -सा पहचाना, नहीं भेद- भावों को माना,
उपेक्षितों घर आना- जाना, जो भी भोज मिला वह खाना|
जीवन भर परार्थ कृत्यों को, किया बंधु दिन-रैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन|
दिया है चिंतन का सुख-चैन||
इस दुनिया को इंसानों ने, साधक चिंतक विद्वानों ने,
रहने योग्य समाज बनाया, शील विनय से गुणवानों ने|
तार्किकता से सदा मिटाया, जड़ता मूलक दैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन|
दिया है चिंतन का सुख-चैन||
वर्तमान जीवन विज्ञानी, तजी धारणायें पाषाणी,
सर्वोदयी नीति अपनायी, सोच बनायी है कल्याणी|
संवैधानिक विधि से पकड़ी, लोकतंत्र की गैन,
दिया है चिंतन का सुख-चैन|
दिया है चिंतन का सुख-चैन||