स्नेह सरिता बहेगी थमेगी नहीं,
रेत में नाँव ठग की चलेगी नहीं।
ये सभी जानते मानते हैं यहाँ,
राजनैतिक लड़ाई रुकेगी नहीं।
नफ़रतों के सहारे लगी आग जो,
वो बिना प्यार के तो बुझेगी नहीं।
घात संघात उत्पात की सोच से,
बात बिगड़ी किसी की बनेगी नहीं।
वो कहानी किसे ज्ञान देगी कहो,
वक्त के दर्द को जो कहेगी नहीं?
चाहती जो परखना हक़ीक़त तुका,
वो खुली आँख डर से झुकेगी नहीं।