Sunday, June 4, 2023

 शराफ़त सिर्फ़ कहने को नज़र में बेरुख़ी रहती।

सफ़ाई वो करेंगे क्या ज़हन में गन्दगी रहती॥
करोड़ों अश्रुओं का भी असर उन पर नहीं होता,
कि जिनके हाथ में मुख़्तारगीरी मुंसिफी रहती।
हमेशा याद रखना है नहीं इस तथ्य को भूलें,
न आतंकी यहाँ घुसते अगर कुछ चौकसी रहती।
उसे साहित्य का सर्जक पुरोधा मानते हैं हम,
कि जिसके आचरण में मेघ सी आवारगी रहती।
किसी भी ठौर पर देखो किसी भी रूप में उनके,
तुम्हें दिख जाएगी व्यवहार में जो राजसी रहती।
तुका इस लोकशाही में सराहा जा सके जिसको,
परखिए चाल में उनके नहीं वो सादगी रहती।
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