शराफ़त सिर्फ़ कहने को नज़र में बेरुख़ी रहती।
सफ़ाई वो करेंगे क्या ज़हन में गन्दगी रहती॥
करोड़ों अश्रुओं का भी असर उन पर नहीं होता,
कि जिनके हाथ में मुख़्तारगीरी मुंसिफी रहती।
उसे साहित्य का सर्जक पुरोधा मानते हैं हम,
कि जिसके आचरण में मेघ सी आवारगी रहती।
किसी भी ठौर पर देखो किसी भी रूप में उनके,
तुम्हें दिख जाएगी व्यवहार में जो राजसी रहती।
तुका इस लोकशाही में सराहा जा सके जिसको,
परखिए चाल में उनके नहीं वो सादगी रहती।
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