Saturday, October 10, 2015

लगते रुतबेदार


लगते रुतबेदार कि चोरी कर करके,
बनवाते सरकार कि चोरी कर करके|
हँसते-हँसते लोग कह रहे हैं उनकी, 
महिमा अपरम्पार कि चोरी कर करके|
नभ को छूता आँख दिखता वो देखो,
इठलाये घरद्वार कि चोरी कर करके|
इतना पसरा जाल उन्हें कुछ कहते यों,
परमेश्वर अवतार कि चोरी कर करके|
जग तो समझे संत इसलिए दिखलाकर,
बँटवाते उपहार कि चोरी कर करके|
किसमें बूता आज तुका जो कहे रचा,
कविता का संसार कि चोरी कर करके||

Saturday, October 3, 2015

सम्बन्ध तस्करों



सम्बन्ध तस्करों से तो जोड़ना न सीखे,
सहकार के दिलों को हम तोड़ना न सीखे|


साहित्य के सिपाही उनको कभी न कहिये,
अन्याय के इरादे जो मोड़ना न सीखे|


इन्सान के हितैषी पथ वह न रच सकेंगे,
अणु अस्त्र के घटों को जो फोड़ना न सीखे|


उनके किये न किंचित मानव विकास होगा,
बन्जर पड़ी धरा को जो गोड़ना न सीखे|


लूटा गया तुका को हर दौर में समझिये,
इंसानियत कभी भी हम छोड़ना न सीखे