डॉ. तुकाराम वर्मा
आपने हमको सराहा और हमने आपको ,
सर्जना की इस तरह तौहीन मत करिए |
ज्यों चमकते हैं न तारें सामने आदित्य के ,
त्यों न अविवेकी कभी आगे रहे साहित्य के ,
रंग जीवन की प्रकृति के अंग हैं पर साथियो!-
श्वेत वस्त्रों की प्रभा रंगीन मत करिए|
काव्य तो निष्पत्ति करता है सरस आनन्द की,
आंतरिक दुर्गन्ध हर के गंध दे मकरंद की,शब्द साधक हो सखे तो स्वार्थ की अभिव्यक्ति से -सज्जनों की जिंदगी ग़मगीन मत करिए |
त्यागना अनिवार्य है अज्ञान के अभिमान को ,
मर्तबा इंसानियत का दीजिये इन्सान को ,
जिंदगी भरपूर जीना चाहते हो तो कभी -
शीश पर शैतानियत आसीन मत करिए|
आधुनिक युग मानता हूँ अर्थ का संसार है ,
प्यार से फिरभी सरस कोई नहीं व्यवहार है,
सर्जना की शक्ति से कुछ शक्तिशाली है नहीं-
लेखनी के वीर मन को हीन मत करिए|
Friday, April 22, 2011
श्वेत वस्त्रों की प्रभा
Thursday, April 21, 2011
शुचिता की कसौटी
-डॉ. तुकाराम वर्मा
भ्रष्टाचार के विरुद्ध श्री अन्ना हजारे के उपवास के उपरांत गठित की जाने वाली ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्यों के बीच में कुछ शक उत्पन्न हो रहा हैं, वयोवृद्ध अधिवक्ता श्री शांतिभूषण के ऊपर अनेक आरोप माननीय दिग्विजय सिंह तथा माननीय अमर सिंह के द्वारा सी .डी. प्रकरण के माध्यम से लगाये जा रहे हैं | इस समाचार को भारतवर्ष के करोड़ों लोग दूरदर्शन पर देख सुन रहे हैं लेकिन इसकी सत्यता किसी पक्ष की और से नागरिकों को प्रभावित नहीं कर पा रही हैं जबकि उपवास इस बात को ध्यान में रख कर किया गया था कि इस आन्दोलन के सभी सदस्य शुचिता कि कसौटी पर शतप्रतिशत खरे होंगें | यहाँ विचार के योग्य प्रश्न उभरता हैं कि एक अधिवक्ता और एक राजनेता के बीच में सामान्य जनता किसे अधिक महत्व देगी विशेष रूप से राष्ट्र सेवा के मार्ग में | सामान्य रूप से क्या यह देखने में नहीं आता हैं कि एक अधिवक्ता किसी भी अपराधी , अत्याचारी, भ्रष्टाचारी अथवा बलात्कारी को भी बचाने के लिए आगे आ जाता हैं महज़ अपनी फीस के लालच में और यदि एक राजनेता भी यही करता हैं तो उसे भी अधिवक्ता महोदय बचाने का हर संभव प्रयास करते हैं | ऐसी विषम स्थिति में आम जनता क्या करे | ऐसा तो नहीं कि यह भी एक अभिनय सिर्फ कार्पोरेट समाज को बचाने के लिए कुछ तथाकथित विद्द्वानों के द्वारा रचा गया हो और एक नेक सच्चा इन्सान अन्ना इनके मीठे सुहावने सपनों के सफ़र का हमराह बन गया हो , यदि ऐसा नहीं हैं तो क्यों आज श्री अरविन्द केज़रीवाल को यह कहना पड़ा कि कमेटी का कोई सदस्य इस्तीफा नहीं देगा क्या एक लोकतान्त्रिक व्यवस्था के अंतर्गत कोई किसी पर ऐसा प्रतिबंध लगा सकता हैं और वह विधि सम्मत हैं शायद नहीं | भ्रम कि स्थिति से वचने का रास्ता खोजा जाना ही जनहित एवं राष्ट्र हित में होगा |
Wednesday, April 20, 2011
कवि-मनीषी की बुलंदी
-डॉ. तुकाराम वर्मा
- नागरिक हैं अब इन्हें आदिम समझना छोड़ दो ,
- आप अपनेआप को कासिम समझना छोड दो |
- यदि तिमिर की कैद से उन्मुक्त होना चाहते ,
- तो किसी की बात को अंतिम समझना छोड़ दो |
- लोग जो भाषण दिया करते किताबी सोच से ,
- उन सभी को आप अब आलिम समझना छोड़ दो |
- राष्ट्र में समतापरक वातावरण बन जायगा ,
- नौकरों को देश का हाकिम समझना छोड़ दो |
- न्याय की दरकार में खानाबदोशी जो लिए ,
- उन फकीरों को प्रिये! मुल्जिम समझना छोड़ दो|
- कवि-मनीषी की बुलंदी एक दिन मिल जायगी ,
- सत्य कहने को तुका जोखिम समझना छोड़ दो |
Friday, April 8, 2011
ज्ञान के प्रकाश का कहाँ हुआ प्रभात है
-डा० तुकाराम वर्मा
अंधकार है अभी , अभी निघात घात है ,ज्ञान के प्रकाश का , कहाँ हुआ प्रभात है?
स्नेह सभ्यता वहां ,प्रभाव क्या दिखा सके,स्वार्थ सिद्धि के लिए , जहाँ अशेष रात है |
चेतना प्रबोध का , अभाव क्यों न हो वहां,अर्थ - तंत्र का जहाँ, बलात बज्रपात है |
लोकराज्य जानता , परन्तु मौन हैं सभी,ध्वंस के कगार पर, खड़ा मनुष्य स्यात है|
लोग तो स्वतंत्र हैं, परन्तु मुक्त रूप से,हो रही कहीं नहीं , तुका स्वतंत्र बात है |
Wednesday, April 6, 2011
राष्ट्रसेवक तो हमेशा
आम जन हर काम के कुछ दाम देते हैं ,
खास हैं वे दाम लेके काम देते हैं |
लोग जो सत्काम को अंजाम देते हैं ,
वे नहीं संसार को संग्राम देते हैं |
राष्ट्रसेवक तो हमेशा राष्ट्र के हित में,
काम करते हैं सुखद परिणाम देते हैं |
लेखनी तो ध्वंस की दासी नहीं होती,
शब्द -साधक संत -सा पैगाम देते हैं |
दूर ही रहना मुनासिब है सदा उनसे,
जो भलों को कर बहुत बदनाम देते हैं |
जो गुलामों की तरह रहते नहीं उनको,
राजनेता मौत का ईनाम देते हैं|
जो तुका सच को सदा सच ही कहा करते,
वे सरस सर्वोदयी आयाम देते हैं |
Tuesday, April 5, 2011
उपहास जो करें
मन धो नहीं सके वदन बुहारते रहे ,
नफ़रत भरी विभावना उभारते रहे |
पढ़कर अनेक पुस्तकें महान जो बने ,
हर भांति वो तमिस्र को दुलारते रहे |
धन लूटकर अपार गेह बैंक भर लिया ,
पर और और और हो पुकारते रहे |
जिनको कहा गया गंवार आदमी वही,
श्रमशक्ति से जहान को संवारते रहे |
मझधार जो फंसे अनीति के समुद्र में ,
उस पार संत ही उन्हें उतारते रहे |
उपहास जो करें तुका उनको बताइये,
कविवृन्द विश्व रूप को निखारते रहे |
Friday, April 1, 2011
समय की नजर से ,
नहीं बच सकोगे समय की नजर से ,
हुए रेत पर्वत सलिल की लहर से |
ख़बरदार रहना शहर की ख़बर से ,
कहीं सामना हो न जाये ज़बर से |
समझदार के साथ बढ़ती समझ है ,
नहीं लोग विद्वान होते उमर से |
बनेगा वही गीत शुचि ज़िन्दगी का,
कहा जाएगा जो ग़ज़ल के अधर से |
बनो राजनेता नहीं फ़िक्र करिए ,
बहुत कुछ मिलेगा इधर से उधर से |
तुकाराम देता नहीं साथ कोई ,
अकेले लड़ो ज़िन्दगी के समर से |
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