Wednesday, April 12, 2017

स्वर्ण सी शुद्धता

ये न समझो कि ऐसा चलेगा सदा,
जो गलत है गलत वो खलेगा सदा|
टहनियाँ लाख छाँटो मगर वृक्ष तो,
पर हितों के लिए ही फलेगा सदा|
नीर परमार्थ सरि से बहे अनवरत,
बर्फ इस लक्ष्य से ही गलेगा सदा|
सृष्टि में ज़िन्दगी का नहीं अंत हो,
प्यार तो प्यार है वो पलेगा सदा|
स्वर्ण सी शुद्धता चाहता जो 'तुका'-
अग्नि के ताप में वो जलेगा सदा|

Tuesday, April 11, 2017

शांति परिवेश

हो सके तो हकीकत समझ लीजिये ,
जो घिरी है मुसीबत समझ लीजियेl
नागरिक जी रहे धर्म के खौफ में,
कौन देंगे हिफाजत समझ लीजिये?
उग्रता आचरण में पनपने लगी,
ये नहीं है शराफत समझ लीजियेl
शांति परिवेश के नाम से देश में,
हो रही है शरारत समझ लीजियेl
लालची लोभ के मोह की मार से,
फैलती है जहालत समझ लीजियेl
क्रूर बेख़ौफ करते दरिन्दी दिखे,
कौन देते इजाजत समझ लीजिये|
ईश के नाम से हो रहा जो तुका,
पूर्व उसके इबादत समझ लीजियेl

Saturday, April 8, 2017

पाप से दूर हूँ|

मानता हूँ कि मैं आप से दूर हूँ|
अर्थ सन्सार के पाप से दूर हूँ||
बाप के तेज का तेज है चित्त में,
किन्तु रहता खुदा बाप से दूर हूँ|
बाँटता जो कि छोटे बड़ों में रहा,
धर्म के छद्म परिमाप से दूर हूँ |
संत-सा आचरण जी रहा सर्वदा,
लोभ की सोच के जाप से दूर हूँ|
बोध में तो नहीं सरहदों की कथा,
स्वार्थ से युक्त सन्ताप से दूर हूँ|
जो किसी पर करे बार छुप के सखे,
शक्ति के उस प्रखर चाप से दूर हूँ||

Thursday, April 6, 2017


आग इंसाफ की

लूटने की प्रथा तो बदलती नहीं,
लालसा से भरी रात ढलती नहीं|
आज कानून मजबूर से दिख रहे,
ये व्यवस्था सँभाले सँभलती नहीं|
स्वर्ण सी शुद्धता हेतु मन में कभी,
आग इंसाफ की तेज जलती नहीं|
मोह रूपी तमस के शमन के लिए,
रौशनी भी प्रभावी निकलती नहीं?
सूखने नीर पाये न सरि में कभी,
शैल से बर्फ इतनी पिघलती नहीं|
न्याय संघर्ष की सोच श्रीमान जी,
हारने पर कभी हाथ मलती नहीं|
बात बिगड़े तभी शीघ्र सुलझाइये,
टालने से 'तुका' बात टलती नहीं|

Tuesday, April 4, 2017

गीत लिखता हूँ ..



जिन शब्दों से शान्ति पनपती उन्हें सुनाता हूँ,
इंसानों को इंसानों जैसा अपनाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

खेत खलियानों की आशा, गाँव-गलियों की अभिलाषा,
मौन रहकर जो रो लेती, दर्द की वो शाश्वत भाषा,
सीखता और सिखाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

नैन ये कहीं नहीं झुकते, भाव भी कभी नहीं रुकते,
पूर्ण ऋण धरती माता के, जानता हूँ न कभी चुकते|
काव्य कर्त्तव्य निभाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

कर्म का क्षेत्र विश्वव्यापी, धर्म कहता जिनको पापी,
सूत्र जीवन संवर्धन के, जानते जो  न चरण चापी|
चित्त वे सुप्त जगाता हूँ
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

लोकतन्त्र के ढाँचे में

******************गीत******************
पानी में आग लगाने की, वह ठेकेदारी करते हैं|
संरक्षक बनके रक्षण की, खुद दावेदारी करते हैं||

छल जोड़े कंधे से कंधा, करने को लूट-पाट धंधा|
वैभवशाली इस दुनियाँ के, आकर्षण में झूमें अंधा||
घर लाखों लगे महकने वे, जो थानेदारी करते हैं|
संरक्षक बनके रक्षण की, खुद दावेदारी करते हैं||

बाजारवाद का डंडा है, बस अर्थ कमाना फंडा है,
कानून अमीरों की शोभा, अपनाये हर हथकंडा है|
पूँजीपति नेताओं के सँग, अब हिस्सेदारी करते हैं||
संरक्षक बनके रक्षण की, खुद दावेदारी करते हैं||

जनता को मूर्ख बनाना है, सच्चाई को दफ़नाना है|
शुचि लोकतन्त्र के ढाँचे में, सामंतवाद अपनाना है||
ठग रूढ़िवाद के तंत्रों की, नित पहरेदारी करते हैं|
संरक्षक बनके रक्षण की, खुद दावेदारी करते हैं||

Monday, April 3, 2017

सुख का वृन्दावन



दुखदायक जंगल उग आया, सुख का वृन्दावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

भूखे-प्यासे लघु गाँवों को, पीपल बरगद की छाँवों को,
शासन पाकर नायक भूले, जब सेवादल के पाँवों को|
तब बिखर गये साथी उनके, वह दौर सुहावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

विपदा गर्दन को कसती है, रोटी को भूख तरसती है,
जिनसे आशायें थी उनकी, बातों से आग बरसती है|
जो पल में तपन बुझाता था, वह शीतल सावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

यह तेरा है, वह मेरा है, दूषण नफ़रत ने घेरा है,
जिस ओर नजर दौड़ाता हूँ, उस ओर प्रचंड अँधेरा है|
अलगाव दुराव प्रभावी है, प्रिय ह्रदय मिलावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||

कुछ पट्टे बंधे दुपट्टे हैं, अनुभव तो कडुवे खट्टे हैं,
झुण्डों में कुछ चट्टे- बट्टे, लटकाये फिरते कट्टे हैं|
उद्घोष हो रहा भयाक्रांत,गायन मनभावन चला गया|
अब केवल सुधियाँ बाकी हैं, मधु मौसम पावन चला गया||


Sunday, April 2, 2017

यह बात खुली

हम सम्विधान के पालक हैं,शुचि सम्विधान रखवाले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

यह बात खुली है कहने दो, इस पर पर्दा मत रहने दो,
जन मन न प्रदूषित हो पाये,नित प्राणवायु को बहने दो|
हम उनकी व्यथा कहेंगे ही, जिनको रोटी के लाले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

हम नारे नहीं लगाते हैं, चेतनता बोध जगाते हैं,
भारतवासी को भारत के, बाहर न कभी भगाते हैं|
हम स्वानुभूति के गायक हैं, मुँह पर न लगाते ताले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

हम लोकतन्त्र के दीवाने, हमने विवेक के ध्वज ताने,
सुख-शांति विश्व को देते जो, वे मूल्य सुहाने पहचाने|
हम राष्ट्र तिरंगे के साथी, करते सहयोग उजाले है|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

यह बात खुली








हम सम्विधान के पालक हैं,शुचि सम्विधान रखवाले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||
यह बात खुली है कहने दो, इस पर पर्दा मत रहने दो,
जन मन न प्रदूषित हो पाये,नित प्राणवायु को बहने दो|
हम उनकी व्यथा कहेंगे ही, जिनको रोटी के लाले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

हम नारे नहीं लगाते हैं, चेतनता बोध जगाते हैं,
भारतवासी को भारत के, बाहर न कभी भागते हैं|
हम स्वानुभूति के गायक हैं, मुँह पर न लगाते ताले हैं|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

हम लोकतन्त्र के दीवाने, हमने विवेक के ध्वज ताने,
सुख-शांति विश्व को देते जो, वे मूल्य सुहाने पहचाने|
हम राष्ट्र तिरंगे के साथी, करते सहयोग उजाले है|
यदि सम्विधान को छेड़ा तो, कुछ हो सकते मतवाले हैं||

हम हैं सबके

मार्ग मिला है ऊँचा-नीचा, शूलों से भरपूर|
हमारी मंजिल तो है दूर||
हमारी मंजिल तो है दूर|||
चलते रहे नहीं कुछ पाया, रुखा-सूखा हँसकर खाया,
रंच थकावट अभी न आई, यद्दपि अब चौथापन आया|
मौसम बदले नहीं लगाया, उन पर कभी कसूर|
हमारी मंजिल तो है दूर||
हमारी मंजिल तो है दूर|||
सोच समझ आये इंसानी, मिले सभी को भोजन पानी,
लोकतन्त्र के सम्विधान में, कोई बने न राजा- रानी|
लक्ष्य यही है यही प्रभावी, करना है दस्तूर|
हमारी मंजिल तो है दूर||
हमारी मंजिल तो है दूर|||
मानवता की परिभाषा को, मतदाता की अभिलाषा को,
बंधु परखना हुआ जरूरी,जन-गण-मन की जिज्ञासा को|
हम हैं सबके इसी नीति को, करना है मंजूर|
हमारी मंजिल तो है दूर||
हमारी मंजिल तो है दूर|||

Saturday, April 1, 2017

श्रेष्ठ आदर्श

आपको प्यार करते रहे प्यार से,
प्यार के गीत प्यारे कहे प्यार से|
एक पल भी नहीं शत्रुता में जिये,
शब्द के वाण लाखों सहे प्यार से|
चेतना शक्ति सन्सार को दे सकूँ,
प्राण पोषक पवन-सा बहे प्यार से|
तर्क प्रज्ञा प्रदायक बने जिंदगी,
ज्ञान की भट्ठियों में दहे प्यार से|
श्रेष्ठ आदर्श जो हो गये विश्व के, 
ख्याल उनके तुका ने तहे प्यार से|