Tuesday, April 4, 2017

गीत लिखता हूँ ..



जिन शब्दों से शान्ति पनपती उन्हें सुनाता हूँ,
इंसानों को इंसानों जैसा अपनाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

खेत खलियानों की आशा, गाँव-गलियों की अभिलाषा,
मौन रहकर जो रो लेती, दर्द की वो शाश्वत भाषा,
सीखता और सिखाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

नैन ये कहीं नहीं झुकते, भाव भी कभी नहीं रुकते,
पूर्ण ऋण धरती माता के, जानता हूँ न कभी चुकते|
काव्य कर्त्तव्य निभाता हूँ|
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

कर्म का क्षेत्र विश्वव्यापी, धर्म कहता जिनको पापी,
सूत्र जीवन संवर्धन के, जानते जो  न चरण चापी|
चित्त वे सुप्त जगाता हूँ
गीत लिखता हूँ गाता हूँ||

No comments:

Post a Comment