Friday, November 22, 2013

गीत गाओ मीत

***गीत गाओ मीत***
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भ्रष्टाचारी के विरोध में, ध्वस्त हुआ अभियान,
ठगों ने बहुत किया हैरान|
ठगों ने बहुत किया हैरान||

गाँव गरीब किसान कहाँ हैं? छलियों में गुणवान कहाँ है?
केवल चतुराई की कथनी, बन सकती रहमान कहाँ है? 
कभी करोड़ीमल हो सकते, नहीं आम इन्सान,
ठगों ने बहुत किया हैरान|
ठगों ने बहुत किया हैरान|| 

जिसने जीवन अर्थ न समझा, रहा स्वार्थ में उलझा-उलझा,
उसके कलुष कारनामों से, खिला चमन तक जाता मुरझा| 
जाल- फरेबी ताने- बाने, बुनते है शैतान,
ठगों ने बहुत किया हैरान|
ठगों ने बहुत किया हैरान||

शब्द साधना जो करते हैं, धन से बहुत दूर रहते हैं,
जनता की आवाज़ उठाते, प्राणवायु बनकर बहते हैं| 
कविता नहीं त्याग सकती है, शिवम सत्य ईमान,
ठगों ने बहुत किया हैरान|
ठगों ने बहुत किया हैरान||

मान लिया सत्ता है खोटी, शिखरों ऊपर दाढ़ी- चोटी,
चित्त गंदगी साफ करे जो, उसकी अक्ल हो गई मोटी|
एक -एक तीली झाड़ू की, बिखर गई श्रीमान| 
ठगों ने बहुत किया हैरान|
ठगों ने बहुत किया हैरान||

Saturday, November 16, 2013

हमारी ग़ज़ल

हमारी ग़ज़ल में तुम्हारी अदा है,
सखे देख लो आँख ये नर्मदा है|

गली गाँव में गूँज है कुछ घरों ने,
भरी लूटकर देश की सम्पदा है|

जिन्हें लोग बेबस बताते उन्हीं के, 
सिरों पर भयाभय बोझा लदा है|

फकीरी सिखाती सदाचार सेवा,
अमीरी नहीं मानती कायदा है|

सदा से रहा बोलवाला बड़ों का,
दुखी कीं न सुनता कोई सदा है|

'तुका' सोचिये तो किसी लेखनी से, 
लिखाती गलत क्या कभी शारदा है?

Saturday, November 2, 2013

जीवन गीत:-

जीवन गीत:-

ज्ञान रौशनी देने वाली, दिखती आज निगाह नहीं है|
अर्थतंत्र में फँसी ज़िन्दगी, तर्क विवेकी चाह नहीं है||

अंधकार में दीप जगाना, कभी हमारा चिंतन था,
उच्च सोच थी मानववादी, कहीं न झूठा बंधन था|
आज स्वतंत्र लोकशाही है, लोक समर्थक राह नहीं है|
अर्थतंत्र में फँसी ज़िन्दगी, तर्क विवेकी चाह नहीं है||

शिक्षा ऊपर ताले डाले, हर प्रकार अज्ञान बढ़ा, 
जो परार्थ जीते-मरते थे, उनपर स्वार्थी रंग चढ़ा| 
लालच के सागर की पायी, खोजी ने भी थाह नहीं है|
अर्थतंत्र में फँसी ज़िन्दगी, तर्क विवेकी चाह नहीं है||

आपस में छीना-झपटी का, दौर चलाया मनमाना,
देता है इतिहास गवाही, हुआ सहोदर अनजाना|
अपने और परायेपन को, भाती उचित सलाह नहीं है| 
अर्थतंत्र में फँसी ज़िन्दगी, तर्क विवेकी चाह नहीं है||

यह छोटी सी बात समझना, सबके लिए जरूरी है|
प्रगति पगों के आगे ठहरी, कभी नहीं मजबूरी है||
जीवन गीत नहीं वो जिसमें, होता मुक्त प्रवाह नहीं है| 
अर्थतंत्र में फँसी ज़िन्दगी, तर्क विवेकी चाह नहीं है||