Saturday, November 16, 2013

हमारी ग़ज़ल

हमारी ग़ज़ल में तुम्हारी अदा है,
सखे देख लो आँख ये नर्मदा है|

गली गाँव में गूँज है कुछ घरों ने,
भरी लूटकर देश की सम्पदा है|

जिन्हें लोग बेबस बताते उन्हीं के, 
सिरों पर भयाभय बोझा लदा है|

फकीरी सिखाती सदाचार सेवा,
अमीरी नहीं मानती कायदा है|

सदा से रहा बोलवाला बड़ों का,
दुखी कीं न सुनता कोई सदा है|

'तुका' सोचिये तो किसी लेखनी से, 
लिखाती गलत क्या कभी शारदा है?

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