हमारी ग़ज़ल में तुम्हारी अदा है,
सखे देख लो आँख ये नर्मदा है|
गली गाँव में गूँज है कुछ घरों ने,
भरी लूटकर देश की सम्पदा है|
जिन्हें लोग बेबस बताते उन्हीं के,
सिरों पर भयाभय बोझा लदा है|
फकीरी सिखाती सदाचार सेवा,
अमीरी नहीं मानती कायदा है|
सदा से रहा बोलवाला बड़ों का,
दुखी कीं न सुनता कोई सदा है|
'तुका' सोचिये तो किसी लेखनी से,
लिखाती गलत क्या कभी शारदा है?
सखे देख लो आँख ये नर्मदा है|
गली गाँव में गूँज है कुछ घरों ने,
भरी लूटकर देश की सम्पदा है|
जिन्हें लोग बेबस बताते उन्हीं के,
सिरों पर भयाभय बोझा लदा है|
फकीरी सिखाती सदाचार सेवा,
अमीरी नहीं मानती कायदा है|
सदा से रहा बोलवाला बड़ों का,
दुखी कीं न सुनता कोई सदा है|
'तुका' सोचिये तो किसी लेखनी से,
लिखाती गलत क्या कभी शारदा है?
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