Tuesday, November 22, 2016

-:जाओ गाओ गीत सुनाओ:-

-:जाओ गाओ गीत सुनाओ:-
एक ओर सेठों के वक्ता, एक ओर कमजोर|
समस्यायें आई घनघोर|
समस्यायें आई घनघोर||
जन धन यहाँ लूटने वाले, कालेधन के बोरे काले,
लगा चुके हैं राजनीति के, मुँह के ऊपर मोटे ताले|
इंसानों को समझ रहे हैं, ठगुआ अब भी ढोर|
समस्यायें आई घनघोर|
समस्यायें आई घनघोर||
भूखे-प्यासे रक्त नीर का, सदियों झेली व्यथा पीर का|
एक- एक आँसू अब कहता , अबलाओं के फटे चीर का|
और अधिक मजबूत बनेगी, श्रमजीवी की डोर|
समस्यायें आई घनघोर|
समस्यायें आई घनघोर||
अब न भुलावे में आना है, उकसावों को ठुकराना है|
मज़बूरी हो कितनी भारी, मगर वोट देने जाना है|
हर हालत में उन्हें हराना. मचा रहे जो शोर|
समस्यायें आई घनघोर|
समस्यायें आई घनघोर||
मीठी- मीठी बातें करते, सिसकी लेते आँसू भरते|
लगता है अपराधबोध से, ग्रसित आप अपने से डरते||
काले धन के चोर बताते, मजदूरों को चोर| 
समस्यायें आई घनघोर|
समस्यायें आई घनघोर||

Tuesday, September 13, 2016

:तर्क नैन दो खोल::

::::::::तर्क नैन दो खोल:::::::::
संभलो- संभलो बदल न जाये, दुनिया का भूगोल।
दरिंदे करें ईश का रोल।।
दरिंदे करें ईश का रोल।।।
जहाँ बने हैं घर बहुखंड़ी, जहाँ अनैतिक लगती मंडी।
वहाँ देखिये कई करोड़ों, वदनों पर है शेष न बंडी।।
भूमि- गगन के बीच ध्वंस के, यान रहे हैं डोल।
दरिंदे करें ईश का रोल।।
दरिंदे करें ईश का रोल।।।
दहशतगर्दों वाली टोली, कहीं चला देती है गोली।
घिरी अंधेरों के घेरे में, रोती भूखी- प्यासी खोली।।
मिट्टी में मिल रहे करोड़ों, लाल रत्न अनमोल।
दरिंदे करें ईश का रोल।।
दरिंदे करें ईश का रोल।।।
अंदर घुटो नहीं कुछ बोलो, सच्चाई के साथी हो लो।
वक़्त पुकार दे रहा सुनिये, प्राणवायु के जैसा डोलो।
सदियों से जो सुप्त पड़े वे, तर्क नैन दो खोल।
दरिंदे करें ईश का रोल।।
दरिंदे करें ईश का रोल।।।

Sunday, September 11, 2016

/////////( युगप्रबोध)/////////

/////////( युगप्रबोध)/////////
नहीं बिकेंगे नहीं बिकेंगे, हत्या के हथियार।
यही है युगप्रबोध दरकार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
छोड़ो तो आदत शैतानी, मत मारो आँखों का पानी।
दौर हाजिरे चाह रहा है, करो आचरण अब इंसानी।।
नहीं पढ़ेंगे नहीं पढ़ेंगे, ठगुओं के अख़बार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
विज्ञापनी नशीले नारे, तस्करियों के रस्ते सारे।
निश्चय बंद कराने होंगे, कालाबाज़ारी के द्वारे।।
नहीं बनेंगे नहीं बनेंगे, धन के हेतु शिकार। 
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
टुकड़ों टुकड़ों का बँटवारा, त्याग हमारा भोग तुम्हारा।
ख़ूब विचार लिया है हमने, ज़ल्लादों ने जाल पसारा।
नहीं डरेंगे नहीं डरेंगे, करने से उपचार।
यही है युगप्रबोध दरकार।।
यही है युगप्रबोध दरकार।।।
हटाना होगा ये अंधेर।।।

Friday, September 9, 2016

एक व्यथित गीत

--- ----:एक व्यथित गीत:--------
विलख रहे हैं विकल गरीबे, बेबस है क़ानून।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।।
सत्ता की नारेबाज़ी ने, घोल दिया है विष पाजी ने।
दाढ़ी- चोटी करें लड़ाई, नफ़रत फैलाई क़ाज़ी ने।।
वोट बटोरू संघठनों ने, किया न्याय का ख़ून।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।।
बढ़ी मिलावटखोरी ऐसी,सच की कर दी ऐसी तैसी। 
वासी भोजन ने समाज की,सूरत कर दी रोगी जैसी।
महँगाई के गर्म तेल ने, इंसा डाले भून।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।।
खेत- बाग़ वीरान हो गये, संरक्षक शैतान हो गये।
जिन्हें जगाना प्रेमभाव था, वही लोग हैवान हो गये।
कलियों की पाँखुरी नौच लीं, रौंदे गये प्रसून।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।
नहीं दो मुट्ठी भर है चून।।।

Thursday, September 8, 2016

तिरंगा विरोधी

तिरंगा विरोधी तिरंगा उठाये,
मिलेंगे नहीं वोट गंगा उठाये|
सुना हो गया कैद कानून ऐसा-
सरेआम कन्या लफंगा उठाये|
दुखी नैन का नीर बस पूछता ये- 
उठा क्यों नहीं क्रूर दंगा उठाये?
नहीं रंच भी तो छिपाये छिपेगा, 
अगर देश का कोष नंगा उठाये|
तुका देश होगा तभी विश्व ऊँचा, 
ध्वजा राष्ट्र जो चित्त चंगा उठाये|

Saturday, September 3, 2016

***** फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान *******

***** फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान *******
बदल रहे हैं खेल खिलौने, दुनिया है हैरान|
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान||
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान|||
रिक्त करोड़ों यहाँ हाथ हैं, अंधकार से घिरे पाथ हैं|
वे अनाथ से दिखें देखिये, जो नाथों के बने नाथ हैं||
ध्वंस खोज में जुटा हुआ क्यों, वर्तमान विज्ञान?
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान||
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान|||
कार्य नहीं दिखते इंसानी, स्वार्थ सिद्धि में रत हैं ज्ञानी|
जलचर जल के बीच पिपासे, नभचर थलचर मांगें पानी||
बने हुये हैं चोर लुटेरे, अब तो विश्व- प्रधान|
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान||
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान|||
फ़ौज सँभाल रही सीमायें, फिरभी तस्कर आयें-जायें|
वोट बटोरें राष्ट्र- पुरोधा, गीत नीति के किसे सुनायें?
वक्त कसैला हुआ विषैला, छोड़ चुका ईमान| 
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान||
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान|||
लेखक हो तो आगे आओ, युगबोधक तस्वीर दिखाओ|
धर्म कर्म है यही काव्य का, दीन-हीन को कंठ लगाओ|| 
भारत की पहचान रहे हैं, साधक श्रमिक किसान|
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान||
फँसे हैं युवा बीच तूफ़ान|||

Thursday, September 1, 2016

युगधर्मी सहगान

************* युगधर्मी सहगान ***************
सद्काम करो सद्काम करो,अपनों को मत बदनाम करो|
जन मन सब देख देख कहते,ठगुओं का काम तमाम करो||
यह दौर चल रहा शैतानी, करता फिरता है मनमानी,
इसकी आदत है लूट-पाट, जन जीवन में खींचा-तानी|
इसके विरुद्ध चलना सीखो, संग्राम करो संग्राम करो, 
ठगुओं का काम तमाम करो..............................||
सच को सच सबसे कहो सदा, परिचर्चा करिये यदा-कदा,
खल छल बल से दे रहे यहाँ, भारी से अति भारी विपदा|
सब गाँव नगर हैं उजड़ रहे, फिर से भारत अभिराम करो,
ठगुओं का काम तमाम करो.................................||
मत भ्रमित रहो अभियानों से, टकराओ तो तूफानों से, 
वह भव्य चरित्र नहीं बनते, जो पोषित हों अनुदानों से| 
प्रिय राष्ट्र समृद्ध बनाने को, जनसेवा आठोंयाम करो, 
ठगुओं का काम तमाम करो...............................||

युगधर्मी सहगान

************* युगधर्मी सहगान ***************
सद्काम करो सद्काम करो,अपनों को मत बदनाम करो|
जन मन सब देख देख कहते,ठगुओं का काम तमाम करो||
यह दौर चल रहा शैतानी, करता फिरता है मनमानी,
इसकी आदत है लूट-पाट, जन जीवन में खींचा-तानी|
इसके विरुद्ध चलना सीखो, संग्राम करो संग्राम करो, 
ठगुओं का काम तमाम करो..............................||
सच को सच सबसे कहो सदा, परिचर्चा करिये यदा-कदा,
खल छल बल से दे रहे यहाँ, भारी से अति भारी विपदा|
सब गाँव नगर हैं उजड़ रहे, फिर से भारत अभिराम करो,
ठगुओं का काम तमाम करो.................................||
मत भ्रमित रहो अभियानों से, टकराओ तो तूफानों से, 
वह भव्य चरित्र नहीं बनते, जो पोषित हों अनुदानों से| 
प्रिय राष्ट्र समृद्ध बनाने को, जनसेवा आठोंयाम करो, 
ठगुओं का काम तमाम करो...............................||

Wednesday, August 31, 2016

शेष ज़िन्दगी

शेष ज़िन्दगी कर दी हमने, इस धरती को दान|
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
हम हैं सबके सभी हमारे, बच्चों जैसे लगते प्यारे|
हमें भरोसा है युवकों पर, सभी बनेगे ज्योतित तारे||
सबसे उज्ज्वल में होगी, भारत की पहचान|
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
नहीं रहेगी दूषित भाषा, पूरी होगी उर अभिलाषा|
सदा सुनाते ही जायेंगे, मानवता पोषक परिभाषा||
लिया स्वतः संकल्प करेंगे, जनजीवन आसान| 
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
कमजोरों को नहीं रुलाना, दीन-हीन को पास बुलाना,
यही सूत्र है संरचना का, कभी इल्म को नहीं भुलाना|| 
परिवर्तन के लिए जरूरी, ज्ञान युक्त विज्ञान| 
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||

Tuesday, August 30, 2016

सत्ता के विरोध

सत्ता के विरोध को देते, राष्ट्रद्रोह का नाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।। 
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
महँगाई लगती हत्यारी, मुक्त घूमते अत्याचारी।
अनाचारियों के रुतबे हैं, भय पसारते भ्रष्टाचारी।।
अर्थतंत्र का बना जा रहा, मानव पुनः ग़ुलाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
उपेक्षितों को ख़ूब सताया, सच्चों को भी धता बताया।
कन्याओं की लुटी आबरू, रंच नहीं अफ़सोस जताया।।
कालेधंधों ऊपर कोई, लगी न अभी लगाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
सीमाओं को बैरी घेरे, ध्वंस मेघ छा रहे घनेरे।
घर के अंदर अपनों में भी, खोज रहे हो तेरे मेरे।।
उग्रवाद आतंकवाद का, हुआ न काम तमाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।

Saturday, August 27, 2016

ठगों को बड़ी

ठगों को बड़ी कुर्सियाँ मिल रही हैं,
यहाँ चोटियाँ दाढ़ियाँ हिल रहीं हैं।
उन्हें शान्ति का दूत बतला रहे अब,
कि जो वर्दियाँ क्रूर क़ातिल रहीं हैं।
नहीं प्यार की राह तक जानते वह-
जिन्हें शक्तियाँ श्रेष्ठ हासिल रहीं हैं।
सही बात है राजपथ की नज़र से-
घनी बस्तियाँ पूर्ण ओझिल रहीं हैं।
वहाँ से भले न्याय की कल्पना क्या-
जहाँ चौकियाँ नित्य आदिल रहीं हैं।
बदलने लगी राजनैतिक लहर अब-
सदन में तुका साढ़ियाँ खिल रहीं हैं।

Saturday, August 20, 2016

कहा नहीं जाता है कुछ भी



कहा नहीं जाता है कुछ भी गाली देने वालों से।
सही नहीं माना जाता है, मेल बढ़ाना व्यालों से।।
नव परिवर्तन आ सकता है, अगर कार्य हों विज्ञानी।
नफ़रत पोषित भाषा त्यागें, राह पकड़ लें इन्सानी।।
वहाँ रौशनी नहीं पहुँचती, बन्द गेह जो तालों से।
दो के बीस बनाने वाले, सचमुच ठग कहलाते हैं।
ठगुओं से ही तो ठगुओं के, बनते रिश्ते- नाते हैं।।
प्रगति वही कर पाये जग में, जो निकले जंजालों से।
इन्सानों का धर्म एक है, सबको अपनों -सा मानें।
एक वृक्ष के हम सब पत्ते, इस सच्चाई को जानें।।
हमें शीघ्र आना ही होगा, बाहर विषद बवालों से।
सही नहीं माना जाता है, मेल बढ़ाना व्यालों से।।

Friday, August 19, 2016

आज़ादी तुका यह पूछ रही,

उलफ़त से भरा यह दौर नहीं,
नृप करता जरा भी गौर नहीं|
कहता है बड़ी जो बात सदा, 
उसमें है गरल कुछ और नहीं|
जनहित में कभी तकरार न हो, 
शासन का रहा वह तौर नहीं|
माँ जैसा मिले कुछ प्यार जहाँ, 
अबतक तो मिला वह ठौर नहीं|
आज़ादी तुका यह पूछ रही, 
क्यों सबके लिए दो कौर नहीं?

Thursday, August 18, 2016

वोट चाहिये वोट चाहिये,



ढोल बजाया ख़ूब जा रहा, अपने और परायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
वोट चाहिये वोट चाहिये, नोट चाहिये खोटों को,
धन्नासेठों के रखवाले, सता रहे हैं छोटों को।
लूटा जाने लगा कोष है, दोनों हाथ निकायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
शैतानों ने विष फैलाया, जाति-धर्म में उलझाया,
लोग विरोध न करने पायें, जनता में भय बैठाया।
इंसानों का रक्त बह रहा, प्रश्न बना चौपायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
सपनों वाली स्वर्ण कहानी, दे न सकी दाना-पानी,
व्याप्त हो चुकी है सत्ता में, अब मनचाही मनमानी।
खेला जाने लगा खेल है, जादू भरी कलायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।105

Monday, August 15, 2016

स्वतंत्रता धाम।



आज़ादी के दीवानों को, बारम्बार प्रणाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
समता का आधार बनाया,क्षमता का संदेश सुनाया,
संरचना के लिए देश में, ममता का माहौल बढ़ाया।
स्वाभिमान के परवानों का, अमर हमेशा नाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
भारत माँ के सभी दुलारे, कितने प्यारे, कितने न्यारे, 
ज्योतित देश करेंगे ऐसा, जैसे ज्योतित नभ के तारे।
लोकतंत्रीय अभियानों ने, रचे नव्य आयाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
अबतो कोई नहीं पराया, संविधान ने सत्य सिखाया,
पंचशील प्रेमी अनुयायी, हमने सबको गले लगाया।
न्यायनीति के बाग़ानों में, सुमन खिले अभिराम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
मानवीय सद्धर्म हमारा, विश्वशांति सद्भावी नारा,
लोकहितैषी जीवन शैली, दूर करेंगे दूषण सारा।
सर्वोदय के सहगानों को, बाँट रहे ईनाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।

Monday, August 8, 2016

बनते बड़े विद्वान

तूफ़ान खड़ा हैं किये जो बात पर यहाँ,
वो रक्त बहाते रहे अज्ञात पर यहाँ।
मारे भरे बाज़ार गये जात पर यहाँ,
बोले नहीं श्रीमान कभी घात पर यहाँ।
नाराज़ दिखे वे बहुत उत्पात पर यहाँ,
क़ाबू रखे कभी न जो जज़्बात पर यहाँ।
बनते बड़े विद्वान वे इस दौर में सुना,
जो सोचते न रंच हैं हालात पर यहाँ।
सामन्त प्रथा से अभी उबरे न लोग वे,
जो प्रश्न उठाते दिखें औक़ात पर यहाँ।
नारे तुका स्वदेश के जो लोग लगाते,
मुँह खोलते न वे कभी आयात पर यहाँ।

Saturday, August 6, 2016

जयति जय भारत माँ की जय।

राष्ट्र प्रगति की कभी न मंदिम, पड़ने पाये लय, 
जयति जय भारत माँ की जय।
केसर पूरित आनन इसका, पग चंदन सद्गंध,
भुज विशाल पूरब-पश्चिम के, आलिंगन अनुबंध।
जन गण मन के अभिनंदन का, स्वर्णिम सूर्योदय,
जयति जय भारत माँ की जय।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब इसकी संतान,
बौद्ध बहाई जैन पारसी, करते मिल गुणगान।
माँ की गोदी आश्रय देती, सिर पर नील निलय,
जयति जय भारत माँ की जय।
अरसठ वर्षों की आज़ादी, देती शुचि संदेश,
लोकतन्त्र के हम हैं राही, हरें सभी के क्लेश।
संविधान की यही भावना, जग को करें अभय,
जयति जय भारत माँ की जय।
पंचशील के हम अनुयायी, विश्व शांति के मीत,
मानवता है गीत हमारा, सकल प्रकृति से प्रीत।
हम सबकी पहचान एक है, हम सब एक ह्रदय।
जयति जय भारत माँ की जय।

Wednesday, August 3, 2016

टूटे दिल भी मिल सकते हैं,

एक गीत:-
टूटे दिल भी मिल सकते हैं, मृदु बोल भरे उपहारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
यह बात समझ से बाहर है, इन्सानों में जातें होती,
इनसे सामाजिक जीवन में, घातों की बरसातें होती| 
विश्वास हमारे खतरे में, पड़ जाते धर्म विचारों से, 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
इन नीले पीले रंगों ने, केसर की लाल उमंगों ने,
कटुता के सिवा दिलाया क्या, इन वोट लालची जंगों ने? 
वंचित कर दिया वंचितों को, वैधिक मौलिक अधिकारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
परिवर्तन लाना है जिनको, संवर्धन करना है जिनको,
भारत में शील भावना का, अभिनंदन करना है जिनको|
उन सबके लिए जरूरी है, जुड़ जाना बौद्धिक द्वारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||

Thursday, May 5, 2016

औषधि है बाज़ार।

योग बना वो रोग कि जिसकी, औषधि है बाज़ार।
कमाई करिये अपरंपार।
कमाई करिये अपरंपार।।
गुरु हैं बाबा करें छलावा, आकर्षण से भरा दिखावा।
वक़्त बदलते लाचारी से, व्यापारी करता पछतावा।
लाभ-हानि का गणित न जाने, नैतिकता आभार।
कमाई करिये अपरंपार।
कमाई करिये अपरंपार।।
लाखों अर्थ समर्थक चेले, ख़ूब लगाते रहते मेले।
रूप स्वदेशी सोच विदेशी, खेल लुभाने वाले खेले।।
कर्तव्यों का बोध न जिनको, माँगें वे अधिकार।
कमाई करिये अपरंपार।
कमाई करिये अपरंपार।।
जाति भावना लगे सुहानी, मनमानी भाये शैतानी।
नवविकास के हेतु चुनी है, टूटी फूटी सड़क पुरानी।।
वैज्ञानिकता की बातें हैं, जड़ता पथ स्वीकार।
कमाई करिये अपरंपार।
कमाई करिये अपरंपार।।

Saturday, April 16, 2016

हम प्यार सहारे जीते हैं,



हम प्यार सहारे जीते हैं,
हँस-हँसकर विष भी पीते हैं।

उर उल्फ़त घट से भरे हुये,
फिरभी कर धन से रीते हैं।

अच्छे दिन की प्रत्याशा में,
दुर्दिन तो अभी न बीते हैं।

जो नोच रहे तन कलियों के,
वे घूम रहे खल चीते हैं।

जो सत्य कह रहे उनके तो,
लग रहे अनेक पलीते हैं।

जो तुका साथ सत्ता के वे,
पा जाते सभी सुभीते हैं।

सुख मिला न बड़े अमीरों में

एक गीत:-
सुख मिला न बड़े अमीरों में, दुख नहीं गरीबों से पाया| 
नित भले-बुरों को संकट में, सत्पथ दिखलाया अपनाया||
उर कभी नहीं भयभीत रहा, वह जिया जिसे सद्नीति कहा,
पग डिगा नहीं अवरोधों से, आगे निकला बन पवन बहा|
सद्गंधों का बनकर साथी, जग जीवन आँगन महकाया| 
नित भले-बुरों को संकट में, सत्पथ दिखलाया अपनाया||
यह गैर नहीं मन बैर नहीं, पावन चिन्तन में मैर नहीं,
जो थका नहीं हो जीवन में, ऐसा हो सकता पैर नहीं|
थकने पर तो विश्राम किया, पर उठा तुरत चलना भाया|
नित भले-बुरों को संकट में, सत्पथ दिखलाया अपनाया||
प्रिय लोकतन्त्र के लिए जिए, शुचि सद्विचार गुण लिए दिए,
कृत भले लगे जो अनुभव से, वह कार्य मनोरम प्रिये किए|
कवि सबका है सब कवि के हैं, यह गीत रचा हँसकर गाया|
नित भले-बुरों को संकट में, सत्पथ दिखलाया अपनाया||

Tuesday, April 12, 2016

तरुणों-सा मौलिक साहस हो



वह गीत लिखो मनमीत कि जो, संगीत बने नवनीत बने।
हर ह्रदय जिसे गुनगुना उठे, पथ प्रीत बने नवनीत बने ।।

उर के दुर्भाव हटा दे जो, बढ़ते अपराध घटा दे जो,
युग के सच से मुँह मोड़ रहे, उन सबको धूल चटा दे जो।
सदभावन प्रेम प्रसारक हो, स्वर धीत बने नवनीत बने।
हर ह्रदय जिसे गुनगुना उठे, पथ प्रीत बने नवनीत बने।

जन गण मन को अपनाये जो, समता की धार बहाये जो,
विकसित करके प्रिय वर्तमान, भारत भविष्य बन जाये जो।
 
माहौल अनय निर्दयता के, विपरीत बने नवनीत बने।।
हर ह्रदय जिसे गुनगुना उठें, शुचि प्रीत बने नवनीत बने।

तरुणों-सा मौलिक साहस हो, सुमनों- सा आकर्षक रस हो,
कलियों- सी हो मुस्कान प्रिये, वन उपवन-सा सामंजस हो।।
शुचि प्राणवायु का स्रोत बने, सुपुनीत बने नवनीत बने। 
हर ह्रदय जिसे गुनगुना उठे, शुचि प्रीत बने नवनीत बने।।

प्रिय लोकतंत्र को पहचाने, गन पंचशील के ध्वज ताने,
शुचि संविधान को जीवन में,सद्धर्म पुस्तिका सा माने। 
लय कल कल अविरल निकल पड़े, जगजीत बने नवनीत बने। 
हर ह्रदय जिसे गुनगुना उठे, शुचि प्रीत बने नवनीत बने।

वर्तमान के बादशाह



मान लिया वे शहंशाह हैं, वर्तमान के बादशाह हैं|
लेकिन अनयशक्ति के पग में, जनता नहीं शीश धर देगी||
भूख-प्यास हत्यारी झेली, प्राण दिये हैं होली खेली|
तब जाकर आज़ादी पायी, बलिदानों की गूढ़ पहेली||
गाँव गरीब किसान कमेरे, चुप न रहेंगे चुप न रहेंगे,
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे .....
सम्विधान के हम रखवाले, खोलेंगे नफ़रत के ताले| 
उनसे भी तो मुक्ति मिलेगी, जो अंग्रेज खड़े हैं काले|| 
जमाखोर ठग शैतानों से, लड़ते आये और लड़ेंगे, 
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे....
सूर्य तिमिर से कब डरता है, पवन परार्थ चला करता है|
जीवन जल से भरा रहे जो, वह सबकी पिपास हरता है||
अत्याचारी, भ्रष्टाचारी, बदलेंगे निश्चय बदलेंगे-| 
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे ...99

Sunday, March 20, 2016

सत्ता के तो आगे


सत्ता के तो आगे- पीछे चलने वाले अच्छे हैं।
सच्चों को जो रौंद रहे वे दिल के काले अच्छे हैं।
मदहोशी का आलम देखो भला नहीं पीयूष लगे,
प्राण पखेरू जो हरते वे विष के प्याले अच्छे है।
ज्ञान रौशनी बाँट रहे जो उन्हें जेल में भेजो तो,
विद्यालय के दरवाज़ों पर लटके ताले अच्छे हैं।
सदसुमनों की बातें करते हँसते और हँसाते जो, 
उनको तो मिलती दुतकारें लगते भाले अच्छे है|
जो परमार्थ किया करते हैं वे निज दर्द नहीं कहते,
गर्म धूल पर चलकर मिलते लगते छाले अच्छे हैं|
होली का माहौल छा रहा अब मनमानी हो सकती,
विरोधियों का करो सफाया साली साले अच्छे हैं|
गूँज रहा है शोर सफ़ाई तुका देश के कोनों में,
पर सरकारी दफ़्तर में तो लगते जाले अच्छे हैं।

Saturday, March 5, 2016

वर्तमान के बादशाह


मान लिया वे शहंशाह हैं, वर्तमान के बादशाह हैं|
लेकिन अनयशक्ति के पग में, जनता नहीं शीश देगी||
भूख-प्यास हत्यारी झेली, प्राण दिये हैं होली खेली|
तब जाकर आज़ादी पायी, बलिदानों की गूढ़ पहेली||
गाँव गरीब किसान कमेरे, चुप न रहेंगे चुप न रहेंगे,
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे .....
सम्विधान के हम रखवाले, खोलेंगे नफ़रत के ताले| 
उनसे भी तो मुक्ति मिलेगी, जो अंग्रेज खड़े हैं काले|| 
जमाखोर ठग शैतानों से, लड़ते आये और लड़ेंगे, 
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे....
सूर्य तिमिर से कब डरता है, पवन परार्थ चला करता है|
जीवन जल से भरा रहे जो, वह सबकी पिपास हरता है||
अत्याचारी, भ्रष्टाचारी, बदलेंगे निश्चय बदलेंगे-| 
सत्य कहेंगे सत्य कहेंगे, मान लिया वे ...

vyatha


माना जीभ कटा भी लोगे, तन को दफ्न करा भी दोगे| 
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
चालाकी से चतुराई से, धन बल छल की अधिकाई से,
सुप्त नहीं चेतनता होगी, आकर्षक स्वर शहनाई से|
माना मूर्ख बना भी लोगे, मौलिक स्वत्व नहीं भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
शिक्षा पथ के हैं अनुयायी, न्याय राह जनहित अपनायी|
भारत भव्य बनायेंगे ही, यह सौगन्ध सोचकर खायी||
माना वस्त्र छिना भी लोगे, माटी संग मिला भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||
तर्क बुद्धि के यंत्र हमारे, प्रज्ञा सिंचित मन्त्र हमारे|
रोके नहीं रुकेंगे प्यारे!, संवैधानिक यन्त्र हमारे||
माना दृग निकला भी लोगे, लाखों द्रोह लगा भी दोगे|
फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा, फिरभी लोकतन्त्र बोलेगा||

उठने की बात करो


एक गीत:-
गिरने की सीमायें टूटीं, अब उठने की बात करो|
वर्तमान की सोच सँवारों, स्नेहसिक्त बरसात करो||
बुरा-भला कहने से अच्छी, बात नहीं बन सकती है,
दूषित दृष्टि और होती वो, जो पर तन धन तकती है| 
बिगड़ रहा परिवेश सुधारो, सहजीवन हालात करो| 
गिरने की सीमायें टूटीं, अब उठने की बात करो|
वर्तमान की सोच सँवारों, स्नेहसिक्त बरसात करो||
जाति-वर्ग की सकरी गालियाँ, पग न खुले धरने देंगी,
धर्म -मजहबी कलुष कथायें. प्रगति नहीं करने देंगी|
लोकतन्त्र की वाणी बोलो, बन्द घात-प्रतिघात करो| 
गिरने की सीमायें टूटीं, अब उठने की बात करो|
वर्तमान की सोच सँवारों, स्नेहसिक्त बरसात करो||
राजनीति के इस कीचड़ में, जितना दल-दल छल बल है, 
विमल सलिल -सा अविरल बहके, करना ही अब निर्मल है|
प्राणवायु-सा जीवन पोषक, उज्ज्वल सरस प्रभात करो||
गिरने की सीमायें टूटीं, अब उठने की बात करो|
वर्तमान की सोच सँवारों, स्नेहसिक्त बरसात करो||