हम प्यार सहारे जीते हैं,
हँस-हँसकर विष भी पीते हैं।
हँस-हँसकर विष भी पीते हैं।
उर उल्फ़त घट से भरे हुये,
फिरभी कर धन से रीते हैं।
अच्छे दिन की प्रत्याशा में,
दुर्दिन तो अभी न बीते हैं।
जो नोच रहे तन कलियों के,
वे घूम रहे खल चीते हैं।
जो सत्य कह रहे उनके तो,
लग रहे अनेक पलीते हैं।
जो तुका साथ सत्ता के वे,
पा जाते सभी सुभीते हैं।
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