शायद नयी नजीर से तकलीफ़ हो रही,
बढ़ती हुई लकीर से तकलीफ़ हो रही |
शोषित गरीब वर्ग को दो रोटियाँ मिलीं,
कितनी यहाँ अमीर को तकलीफ़ हो रही|
जब से समाज में दबी आवाज़ उठ रही,
तब से सुना बजीर को तकलीफ़ हो रही|
पर पीर से जिन्हें नहीं किंचत लगाव है,
उनको अधीर पीर से तकलीफ़ हो रही |
जो लोग चाहते ठगी जड़ता बनी रहे,
उनको तुका कबीर से तकलीफ़ हो रही|
बढ़ती हुई लकीर से तकलीफ़ हो रही |
शोषित गरीब वर्ग को दो रोटियाँ मिलीं,
कितनी यहाँ अमीर को तकलीफ़ हो रही|
जब से समाज में दबी आवाज़ उठ रही,
तब से सुना बजीर को तकलीफ़ हो रही|
पर पीर से जिन्हें नहीं किंचत लगाव है,
उनको अधीर पीर से तकलीफ़ हो रही |
जो लोग चाहते ठगी जड़ता बनी रहे,
उनको तुका कबीर से तकलीफ़ हो रही|