Wednesday, August 31, 2016

शेष ज़िन्दगी

शेष ज़िन्दगी कर दी हमने, इस धरती को दान|
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
हम हैं सबके सभी हमारे, बच्चों जैसे लगते प्यारे|
हमें भरोसा है युवकों पर, सभी बनेगे ज्योतित तारे||
सबसे उज्ज्वल में होगी, भारत की पहचान|
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
नहीं रहेगी दूषित भाषा, पूरी होगी उर अभिलाषा|
सदा सुनाते ही जायेंगे, मानवता पोषक परिभाषा||
लिया स्वतः संकल्प करेंगे, जनजीवन आसान| 
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||
कमजोरों को नहीं रुलाना, दीन-हीन को पास बुलाना,
यही सूत्र है संरचना का, कभी इल्म को नहीं भुलाना|| 
परिवर्तन के लिए जरूरी, ज्ञान युक्त विज्ञान| 
हमें तो लिखने हैं सहगान||
हमें तो लिखने हैं सहगान|||

Tuesday, August 30, 2016

सत्ता के विरोध

सत्ता के विरोध को देते, राष्ट्रद्रोह का नाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।। 
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
महँगाई लगती हत्यारी, मुक्त घूमते अत्याचारी।
अनाचारियों के रुतबे हैं, भय पसारते भ्रष्टाचारी।।
अर्थतंत्र का बना जा रहा, मानव पुनः ग़ुलाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
उपेक्षितों को ख़ूब सताया, सच्चों को भी धता बताया।
कन्याओं की लुटी आबरू, रंच नहीं अफ़सोस जताया।।
कालेधंधों ऊपर कोई, लगी न अभी लगाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।
सीमाओं को बैरी घेरे, ध्वंस मेघ छा रहे घनेरे।
घर के अंदर अपनों में भी, खोज रहे हो तेरे मेरे।।
उग्रवाद आतंकवाद का, हुआ न काम तमाम।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।
तुम्हारे भले नहीं हैं काम।।।

Saturday, August 27, 2016

ठगों को बड़ी

ठगों को बड़ी कुर्सियाँ मिल रही हैं,
यहाँ चोटियाँ दाढ़ियाँ हिल रहीं हैं।
उन्हें शान्ति का दूत बतला रहे अब,
कि जो वर्दियाँ क्रूर क़ातिल रहीं हैं।
नहीं प्यार की राह तक जानते वह-
जिन्हें शक्तियाँ श्रेष्ठ हासिल रहीं हैं।
सही बात है राजपथ की नज़र से-
घनी बस्तियाँ पूर्ण ओझिल रहीं हैं।
वहाँ से भले न्याय की कल्पना क्या-
जहाँ चौकियाँ नित्य आदिल रहीं हैं।
बदलने लगी राजनैतिक लहर अब-
सदन में तुका साढ़ियाँ खिल रहीं हैं।

Saturday, August 20, 2016

कहा नहीं जाता है कुछ भी



कहा नहीं जाता है कुछ भी गाली देने वालों से।
सही नहीं माना जाता है, मेल बढ़ाना व्यालों से।।
नव परिवर्तन आ सकता है, अगर कार्य हों विज्ञानी।
नफ़रत पोषित भाषा त्यागें, राह पकड़ लें इन्सानी।।
वहाँ रौशनी नहीं पहुँचती, बन्द गेह जो तालों से।
दो के बीस बनाने वाले, सचमुच ठग कहलाते हैं।
ठगुओं से ही तो ठगुओं के, बनते रिश्ते- नाते हैं।।
प्रगति वही कर पाये जग में, जो निकले जंजालों से।
इन्सानों का धर्म एक है, सबको अपनों -सा मानें।
एक वृक्ष के हम सब पत्ते, इस सच्चाई को जानें।।
हमें शीघ्र आना ही होगा, बाहर विषद बवालों से।
सही नहीं माना जाता है, मेल बढ़ाना व्यालों से।।

Friday, August 19, 2016

आज़ादी तुका यह पूछ रही,

उलफ़त से भरा यह दौर नहीं,
नृप करता जरा भी गौर नहीं|
कहता है बड़ी जो बात सदा, 
उसमें है गरल कुछ और नहीं|
जनहित में कभी तकरार न हो, 
शासन का रहा वह तौर नहीं|
माँ जैसा मिले कुछ प्यार जहाँ, 
अबतक तो मिला वह ठौर नहीं|
आज़ादी तुका यह पूछ रही, 
क्यों सबके लिए दो कौर नहीं?

Thursday, August 18, 2016

वोट चाहिये वोट चाहिये,



ढोल बजाया ख़ूब जा रहा, अपने और परायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
वोट चाहिये वोट चाहिये, नोट चाहिये खोटों को,
धन्नासेठों के रखवाले, सता रहे हैं छोटों को।
लूटा जाने लगा कोष है, दोनों हाथ निकायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
शैतानों ने विष फैलाया, जाति-धर्म में उलझाया,
लोग विरोध न करने पायें, जनता में भय बैठाया।
इंसानों का रक्त बह रहा, प्रश्न बना चौपायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।
सपनों वाली स्वर्ण कहानी, दे न सकी दाना-पानी,
व्याप्त हो चुकी है सत्ता में, अब मनचाही मनमानी।
खेला जाने लगा खेल है, जादू भरी कलायों का।
ध्यान उन्हें तो रंच है नहीं, उजड़े गेह सतायों का।।105

Monday, August 15, 2016

स्वतंत्रता धाम।



आज़ादी के दीवानों को, बारम्बार प्रणाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
समता का आधार बनाया,क्षमता का संदेश सुनाया,
संरचना के लिए देश में, ममता का माहौल बढ़ाया।
स्वाभिमान के परवानों का, अमर हमेशा नाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
भारत माँ के सभी दुलारे, कितने प्यारे, कितने न्यारे, 
ज्योतित देश करेंगे ऐसा, जैसे ज्योतित नभ के तारे।
लोकतंत्रीय अभियानों ने, रचे नव्य आयाम,
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
अबतो कोई नहीं पराया, संविधान ने सत्य सिखाया,
पंचशील प्रेमी अनुयायी, हमने सबको गले लगाया।
न्यायनीति के बाग़ानों में, सुमन खिले अभिराम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।
मानवीय सद्धर्म हमारा, विश्वशांति सद्भावी नारा,
लोकहितैषी जीवन शैली, दूर करेंगे दूषण सारा।
सर्वोदय के सहगानों को, बाँट रहे ईनाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।
दिलाया शुचि स्वतंत्रता धाम।।

Monday, August 8, 2016

बनते बड़े विद्वान

तूफ़ान खड़ा हैं किये जो बात पर यहाँ,
वो रक्त बहाते रहे अज्ञात पर यहाँ।
मारे भरे बाज़ार गये जात पर यहाँ,
बोले नहीं श्रीमान कभी घात पर यहाँ।
नाराज़ दिखे वे बहुत उत्पात पर यहाँ,
क़ाबू रखे कभी न जो जज़्बात पर यहाँ।
बनते बड़े विद्वान वे इस दौर में सुना,
जो सोचते न रंच हैं हालात पर यहाँ।
सामन्त प्रथा से अभी उबरे न लोग वे,
जो प्रश्न उठाते दिखें औक़ात पर यहाँ।
नारे तुका स्वदेश के जो लोग लगाते,
मुँह खोलते न वे कभी आयात पर यहाँ।

Saturday, August 6, 2016

जयति जय भारत माँ की जय।

राष्ट्र प्रगति की कभी न मंदिम, पड़ने पाये लय, 
जयति जय भारत माँ की जय।
केसर पूरित आनन इसका, पग चंदन सद्गंध,
भुज विशाल पूरब-पश्चिम के, आलिंगन अनुबंध।
जन गण मन के अभिनंदन का, स्वर्णिम सूर्योदय,
जयति जय भारत माँ की जय।
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई, सब इसकी संतान,
बौद्ध बहाई जैन पारसी, करते मिल गुणगान।
माँ की गोदी आश्रय देती, सिर पर नील निलय,
जयति जय भारत माँ की जय।
अरसठ वर्षों की आज़ादी, देती शुचि संदेश,
लोकतन्त्र के हम हैं राही, हरें सभी के क्लेश।
संविधान की यही भावना, जग को करें अभय,
जयति जय भारत माँ की जय।
पंचशील के हम अनुयायी, विश्व शांति के मीत,
मानवता है गीत हमारा, सकल प्रकृति से प्रीत।
हम सबकी पहचान एक है, हम सब एक ह्रदय।
जयति जय भारत माँ की जय।

Wednesday, August 3, 2016

टूटे दिल भी मिल सकते हैं,

एक गीत:-
टूटे दिल भी मिल सकते हैं, मृदु बोल भरे उपहारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
यह बात समझ से बाहर है, इन्सानों में जातें होती,
इनसे सामाजिक जीवन में, घातों की बरसातें होती| 
विश्वास हमारे खतरे में, पड़ जाते धर्म विचारों से, 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
इन नीले पीले रंगों ने, केसर की लाल उमंगों ने,
कटुता के सिवा दिलाया क्या, इन वोट लालची जंगों ने? 
वंचित कर दिया वंचितों को, वैधिक मौलिक अधिकारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||
परिवर्तन लाना है जिनको, संवर्धन करना है जिनको,
भारत में शील भावना का, अभिनंदन करना है जिनको|
उन सबके लिए जरूरी है, जुड़ जाना बौद्धिक द्वारों से| 
लगने लगते जन दुश्मन हैं, लोलुपवादी तकरारों से||