Wednesday, August 26, 2020

दौलत की बातें

 

कुछ लोग मुहब्बत के घर में नफ़रत की बातें करते हैं,

कुछ नफ़रत सहके भी हरदम चाहत की बातें करते हैं|

 

इज्जत को लूट रहे जो वे इज्जत की बातें करते हैं,

खलनायक तो व्यवहार हीन आदत की बातें करते हैं|

 

वे नायक हैं व्यावहार हीन उल्फ़त की बातें करते हैं,

जिसकी न इबारत पढ़ सकते उस खत की बातें करते हैं|

 

इस दुनिया का दस्तूर यही थोड़ा-सा अर्थ चढ़ा करके,

ईश्वर से अधिक चाहने को मिन्नत की बातें करते हैं|

 

उन लोगो को सम्मान लाभ जनता से मिलता रहता जो,

नेताओं के घर पर जाने- आने की कसरत की बाते करते हैं|

 

उनके लेखन को मान तुका किस भाँति दिया जा सकता जो,

साहित्यकार हो करके भी दौलत की बातें करते हैं|  

 

Tuesday, August 25, 2020

नागरिक

 

नागरिक हो रहे ख़ूब कमजोर हैं,
धूर्त्त ठग्गू मचाने लगे शोर हैं।
 
मानते लोग विद्वान जिनको वही,
आज ख़ामोश ऐसे लगें ढोर हैं।
 
ये पता ही नहीं चल रहा देखिए-
कौन इस ओर हैं कौन उस ओर हैं।
 
मुस्कुराहट उन्हीं के मुखों पर दिखे,
लूटने में लगे जो जमाख़ोर हैं।
 
जुल्म दुश्वारियों बीच साँसें तुका,
सज्जनों को रहे क्रूर झकझोर हैं।

Sunday, August 23, 2020

चली आँधियाँ तो गिरा घौंसला है,

 

चली आँधियाँ तो गिरा घौंसला है,
जला फूस का ही घरौंदा जला है।
 
जिसे धर्म कहते भले आदमी वो,
ठगी ही नहीं कुछ बड़ा मामला है।
 
सिवा चीख के कुछ नहीं पास उसके,
पता चल चुका वो बहुत खोखला है।
 
हमें बागियों की तरह मानते जो,
उन्होंने सदा सज्जनों को छला है।
 
पिपासा जिसे और की थी बुझानी,
वही जल बना बर्फ जैसा गला है।
 
कभी वो रहा है नहीं क्षेत्रवादी,
सज़र विश्व के हेतु फूला फला है।
 
कभी दोष देना न पर्यावरण को,
प्रकृति ने किया हर किसी का भला है।
 
तुका प्यार है ठोस ईमान जिसका,
किसी ख़ौफ के वो न टाले टला है।

Saturday, August 22, 2020

विश्ववाटिका के फूलों को

 

मजलूमों के साथ आज जो खड़ा नहीं हो पायेगा।
तो सच मानो आने वाला कल न उसे अपनायेगा।।
 
जिसके उर में परपीड़ा के, हेतु वेदना होती है,
विपदाओं से भरे दौर में, उसकी आँख न सोती है।
मुसीबतों के निराकरण के जो न मार्ग बनवायेगा।
तो सच मानो आने वाला कल न उसे अपनायेगा।।
 
भले बुरे इन्सानों का भी, जिसे तजुर्बा होता है,
वो सच्चाई के बोझे को, ख़ुशी ख़ुशी से ढोता है।
अनुभव अर्जित ज्ञानकोष के सूत्र न जो समझायेगा।
तो फिर मानो आने वाला कल न उसे अपनायेगा।।
 
विश्ववाटिका के फूलों को, सड़ना गलना पड़ता है,
उन्हें इत्र बनकर दुनिया में,सतत महकना पड़ता है।
मानव मूल्यों के सदगुण जो साधक नहीं बतायेगा।
तो फिर मानो आने वाला कल न उसे अपनायेगा।।

Thursday, August 20, 2020

संविधान

 

संविधान के साथ जिन्हें है, जन-गण-मन से प्यार, 
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|| 

जो गरीब के साथ चलेंगे, जो अभाव के हाथ बनेंगे,
जनसत्ता उनकी होगी जो, नवसर्जन के पाथ रचेंगे|
हम हैं सबके सभी हमारे , जिनका यह व्यवहार,
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|| 

जो अत्याचारों को छोड़ें, भ्रष्ट जनों से जो मुँह मोड़ें,
बैर बढ़ाने वाले जो भी, किले खड़े हैं उनको तोड़ें|
जो अज्ञान अशिक्षा जड़ता, तजने को तैयार,
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|| 

जो भारत को समझें अपना, लोकतन्त्र हित सीखें तपना,
अपने और और के हित में, अलग नहीं जो रखते नपना|
वैधानिक अनुशासन में जो, करें कार्य व्यापार,
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|
उन्हें हम कर सकते स्वीकार||

अपना मत सज्जन को देंगे, बदले में कुछ कभी न लेंगे,
यह उदघोष यही स्वर कवि का, राष्ट्र्हितैषी गीत रचेंगे|
जो जीवन में पंचशील को, करते अंगीकार, 
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|
उन्हें हम कर सकते स्वीकार|| |63

Wednesday, August 19, 2020

सच्चाई की कमी

 

सच्चाई की कमी दिख रही, राजनीति की गलियों में|
किस शुचिता की खोज रही, ठगुओं में भुजबलियों में?

भूखे- प्यासे बेवश लाखों, विपदाओं के मारे हैं,
शिक्षा- दीक्षा के नारे तो, आसमान के तारे हैं|
गरल छिड़कने लगे दरिन्दे, वन उपवन की कलियों में|
किस शुचिता की खोज रही, ठगुओं में भुजबलियों में?

काली करतूतों को ढँकते, कितने वस्त्र निराले हैं,
जितने उज्ज्वल तन से दिखते, उतने मन के काले हैं|
अन्तर नहीं परखना चाहें, छलियों में मखमलियों में|
किस शुचिता की खोज रही, ठगुओं में भुजबलियों में?

पाले- पोषे ख़ूब जा रहे, जाति- धर्म के आतंकी,
सम्मानित हो रहे सहस्रों, अर्थ समर्थक ढोलंकी|
दूध पी रहे विविध सपोले, स्वर्ण रजत की डलियों में|
किस शुचिता की खोज रही, ठगुओं में भुजबलियों में?94