Sunday, August 23, 2020

चली आँधियाँ तो गिरा घौंसला है,

 

चली आँधियाँ तो गिरा घौंसला है,
जला फूस का ही घरौंदा जला है।
 
जिसे धर्म कहते भले आदमी वो,
ठगी ही नहीं कुछ बड़ा मामला है।
 
सिवा चीख के कुछ नहीं पास उसके,
पता चल चुका वो बहुत खोखला है।
 
हमें बागियों की तरह मानते जो,
उन्होंने सदा सज्जनों को छला है।
 
पिपासा जिसे और की थी बुझानी,
वही जल बना बर्फ जैसा गला है।
 
कभी वो रहा है नहीं क्षेत्रवादी,
सज़र विश्व के हेतु फूला फला है।
 
कभी दोष देना न पर्यावरण को,
प्रकृति ने किया हर किसी का भला है।
 
तुका प्यार है ठोस ईमान जिसका,
किसी ख़ौफ के वो न टाले टला है।

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