Tuesday, March 25, 2014

चिंतन ओध

"**चिंतन ओध**"
लोकतन्त्र का उनके उर में, नहीं पनपता बोध,
सहन जो करते नहीं विरोध|
सहन जो करते नहीं विरोध||

राजनीति के विविध विरोधी, सहयोगी होते हैं,
तर्क विवेकी स्वच्छ नीर से, बैर मैल धोते हैं|
नव विकास के हेतु न चाहें, वे संवर्धन शोध,
सहन जो करते नहीं विरोध|
सहन जो करते नहीं विरोध|| 

एक जगह पर रूक जाने को, जड़ता माना जाता,
बीज न जो सड़ता गलत है, वो न पुनः उग पाता|
नवपरिवर्तन कभी न लाता, उनका चिंतन ओध,
सहन जो करते नहीं विरोध|
सहन जो करते नहीं विरोध||

जनसेवा के लिए सँभालें, जो भी शासन सत्ता,
उनके साथ राष्ट्र उपवन का, हँसता पत्ता-पत्ता| 
प्रायः न्याय नीतियाँ तज के, भग जाते वे योध,
सहन जो करते नहीं विरोध|
सहन जो करते नहीं विरोध||

Monday, March 10, 2014

कवि जीवन तो..



कवि जीवन तो वक्त विवेचक स्नेहाकर्षण है,
सब कुछ साफ दिखाई देता उज्ज्वल दर्पण है|

संग ह्रदय से स्नेह सलिल की धार फूट पड़ती,
जब नयनों में करुण भाव का रहता तर्पण है|

बिगड़े हुए कार्य बन जाते, वहाँ न रिपु रहते,
जहाँ प्यार से रहा प्यार के लिए समर्पण है|

वह उत्तम विचार का उतना बन सकता दानी-
तर्क- कसौटी पर जो करता जितना घर्षण है|

परपीड़ा से पीड़ित जब उर करुणामय होता,
तब कर सकता भाव सुधा से भरा प्रवर्षण है|

कह सकते कवि उसे तुका जो निष्पृह अंतर से,
कर देता परमार्थ स्वतः ही तन मन अर्पण है|

Friday, March 7, 2014

उज्ज्वल तन की ह्रदय मलिनता

राजनीति में छिपी कुटिलता दुनिया ने देखी|
उज्ज्वल तन की ह्रदय मलिनता दुनिया ने देखी||

जोड़- गाँठ से बड़ी कुर्सियाँ जो छीने उनकी,
गाँव-नगर में व्याप्त पतितता दुनिया ने देखी|

शक्तिवान को और और जो दुर्बल को मिलती,
न्याय-नीति में वही विविधता दुनिया ने देखी|

संत भाँति बेदाग़ लबादे जो लादें उनकी,
चतुराई से जनित अधमता दुनिया ने देखी|

हाड़ तोड़ श्रम करें 'तुका' जो तरसें रोटी को ,
उन आँखों में भरी सलिलता दुनिया ने देखी |