कवि जीवन तो वक्त विवेचक स्नेहाकर्षण है,
सब कुछ साफ दिखाई देता उज्ज्वल दर्पण है|
संग ह्रदय से स्नेह सलिल की धार फूट पड़ती,
जब नयनों में करुण भाव का रहता तर्पण है|
बिगड़े हुए कार्य बन जाते, वहाँ न रिपु रहते,
जहाँ प्यार से रहा प्यार के लिए समर्पण
है|
वह उत्तम विचार का उतना बन सकता दानी-
तर्क- कसौटी पर जो करता जितना घर्षण है|
परपीड़ा से पीड़ित जब उर करुणामय होता,
तब कर सकता भाव सुधा से भरा प्रवर्षण है|
कह सकते कवि उसे तुका जो निष्पृह अंतर
से,
कर देता परमार्थ स्वतः ही तन मन अर्पण
है|
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