नशेबाज-सी सो रही राजधानी,
कदाचार को ढो रही राजधानी|
डकैती बकैती लठैती बढ़ी है,
अनाचार से रो रही राजधानी|
व्यवस्था हुई चम्बली आज देखो,
डवांडोल कुछ हो रही राजधानी|
विषैले फलों को उगाती रहे जो,
वही बीज तो बो रही राजधानी|
मचा राजनैतिक घमासान ऐसा,
'तुका' धैर्य को खो रही राजधानी|