किसी के पैर के आगे झुका जो सिर नहीं होगा,
विवेकी हो बड़ा कितना मगर कादिर नहीं होगा|
मिले हम लोग वर्षों बाद हैं हालात कहने को,
चलो हो जाए परिचर्चा कि मौका फिर नहीं होगा|
हमें तो गम नहीं कुछ भी पता है आख़िरी सच ये,
मिला जो वक्त जीवन को यहाँ वो चिर नहीं होगा|
तुम्हें शायद नहीं है ज्ञात दुनियावी हकीकत ये,
कि मानव से अधिक कोई कहीं माहिर नहीं होगा|
रही है चाह सत्ता की जिसे अपने लिए जग में,
भले कोई बने वो तो ह्रदय शाकिर नहीं होगा|
चले वो दाव कितने भी नहीं अब काम आयेंगे,
कभी शैतान से ज्यादा चतुर शातिर नहीं होगा|
इसे मत भूलिये जड़ता परिष्कृत हो नहीं सकती,
वही तो शुद्ध होगा नीर जो भी थिर नहीं होगा|
उमड़ते भाव साहित्यिक तुका बेख़ौफ़ यूँ कहता,
कि कोई आदमी कवि से प्रखर साबिर नहीं होगा|
विवेकी हो बड़ा कितना मगर कादिर नहीं होगा|
मिले हम लोग वर्षों बाद हैं हालात कहने को,
चलो हो जाए परिचर्चा कि मौका फिर नहीं होगा|
हमें तो गम नहीं कुछ भी पता है आख़िरी सच ये,
मिला जो वक्त जीवन को यहाँ वो चिर नहीं होगा|
तुम्हें शायद नहीं है ज्ञात दुनियावी हकीकत ये,
कि मानव से अधिक कोई कहीं माहिर नहीं होगा|
रही है चाह सत्ता की जिसे अपने लिए जग में,
भले कोई बने वो तो ह्रदय शाकिर नहीं होगा|
चले वो दाव कितने भी नहीं अब काम आयेंगे,
कभी शैतान से ज्यादा चतुर शातिर नहीं होगा|
इसे मत भूलिये जड़ता परिष्कृत हो नहीं सकती,
वही तो शुद्ध होगा नीर जो भी थिर नहीं होगा|
उमड़ते भाव साहित्यिक तुका बेख़ौफ़ यूँ कहता,
कि कोई आदमी कवि से प्रखर साबिर नहीं होगा|