Saturday, May 31, 2014

किसी के पैर के आगे

किसी के पैर के आगे झुका जो सिर नहीं होगा,
विवेकी हो बड़ा कितना मगर कादिर नहीं होगा|

मिले हम लोग वर्षों बाद हैं हालात कहने को, 
चलो हो जाए परिचर्चा कि मौका फिर नहीं होगा|

हमें तो गम नहीं कुछ भी पता है आख़िरी सच ये,
मिला जो वक्त जीवन को यहाँ वो चिर नहीं होगा|

तुम्हें शायद नहीं है ज्ञात दुनियावी हकीकत ये,
कि मानव से अधिक कोई कहीं माहिर नहीं होगा|

रही है चाह सत्ता की जिसे अपने लिए जग में,
भले कोई बने वो तो ह्रदय शाकिर नहीं होगा| 

चले वो दाव कितने भी नहीं अब काम आयेंगे, 
कभी शैतान से ज्यादा चतुर शातिर नहीं होगा|

इसे मत भूलिये जड़ता परिष्कृत हो नहीं सकती, 
वही तो शुद्ध होगा नीर जो भी थिर नहीं होगा|

उमड़ते भाव साहित्यिक तुका बेख़ौफ़ यूँ कहता,
कि कोई आदमी कवि से प्रखर साबिर नहीं होगा|

No comments:

Post a Comment