Tuesday, May 6, 2014

प्रतिशोधों की आग

लोकतंत्र में एक व्यक्ति के पीछे कभी न भागो,
भक्तिवाद की नींद तोड़ के आँखें खोलो जागो| 

देश का संविधान कहता, अनय को रंच नहीं सहता,
जिसे है राजनीति का बोध, नहीं वह भयाक्रांत रहता|
सब स्वतंत्र मतदाता अब तो दास भावना त्यागो,
भक्तिवाद की नींद तोड़ के आँखें खोलो जागो|

चिकनी चुपड़ी करके बातें, करते रहते साजिश घातें,
जाति-धर्म का जहर घोल के, करवाते रक्तिम बरसातें,
निष्क्रिय करिये दूषित गोले तोप वोट की दागो,
भक्तिवाद की नींद तोड़ के आँखें खोलो जागो|

युगों-युगों के सत्ता भोगी, घूम रहे यों ज्यों हों जोगी,
प्रतिशोधों की आग लगाते, मानों हों संक्रामक रोगी|
जो माहौल विषाक्त बनायें उनके पैर न लागो, 
भक्तिवाद की नींद तोड़ के आँखें खोलो जागो|

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