एक गीत :- 'बदलिये साधो अपनी चाल'
डसने को तैयार हो रहे, लोकपाल के व्याल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
पता नहीं कब किस कारण से, सच को घेरा जाये,
बिना बात कुछ कमजोरों के, सिर पर संकट आये|
झुकवाये जायें विवेक के, चौराहों पर भाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
युगों-युगों के कई लुटेरे, फिर से हुये प्रभावी ,
सदाचार दफनाने वाले, लोकतन्त्र पर हावी|
आज राजशाही का बिछने, लगा राष्ट्र में जाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
हारे-थके बोझ के मारे, भूखे- प्यासे बच्चे,
विपदाओं के सहे थपेड़े, बने रहे जो सच्चे|
खतरे में दिख रहा और भी, उनका जीवन-काल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
अपना देश बचाना होगा, भू का कर्ज चुकायें,
लोकतंत्र पर विपदा आई, नैतिक फर्ज निभायें|
निगल रहे वे संविधान को, जो हैं मालामाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
डसने को तैयार हो रहे, लोकपाल के व्याल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
पता नहीं कब किस कारण से, सच को घेरा जाये,
बिना बात कुछ कमजोरों के, सिर पर संकट आये|
झुकवाये जायें विवेक के, चौराहों पर भाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
युगों-युगों के कई लुटेरे, फिर से हुये प्रभावी ,
सदाचार दफनाने वाले, लोकतन्त्र पर हावी|
आज राजशाही का बिछने, लगा राष्ट्र में जाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
हारे-थके बोझ के मारे, भूखे- प्यासे बच्चे,
विपदाओं के सहे थपेड़े, बने रहे जो सच्चे|
खतरे में दिख रहा और भी, उनका जीवन-काल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||
अपना देश बचाना होगा, भू का कर्ज चुकायें,
लोकतंत्र पर विपदा आई, नैतिक फर्ज निभायें|
निगल रहे वे संविधान को, जो हैं मालामाल,
बदलिये साधो अपनी चाल|
बदलिये साधो अपनी चाल||