राजनीति के गलियारे में, कीचड़ की भरमार,
सफेदी दिखती है लाचार|
सफेदी दिखती है लाचार||
अनुभवहीन व्यक्तियों द्वारा, ऐसा उठा विवाद,
सत्य तथ्य के ऊपर हावी, होने लगा निनाद|
भ्रष्ट दूर करने को निकले, फैला भ्रष्टाचार|
सफेदी दिखती है लाचार|
सफेदी दिखती है लाचार||
असमंजस में खोई जनता, सुने अनैतिक गीत,
सुविधाभोगी लगे समझने, अपने को जगजीत|
स्वार्थवृत्ति के दुरभिसंधि से, होने लगे करार|
सफेदी दिखती है लाचार|
सफेदी दिखती है लाचार||
मजबूरी में दिल्ली छोड़ी, गये गाँव की ओर,
चौथेपन ने तरुणाई को, दिया खूब झकझोर|
जनता फूटी आँखों देखे, परिवर्तित व्यवहार|
सफेदी दिखती है लाचार|
सफेदी दिखती है लाचार||
तुकाराम वर्मा
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