राजनीती में घुस बैठे हैं, कई शेखचिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली||
लम्बी-चौड़ी बातें करके, इतना भ्रम फैलाया,
मतदाता को मोह तमाशा, समझ नहीं आया|
चूस रही है रक्त पिपासी, सत्ता की किल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली||
खींच-तान की आन-बान में, शान हुई मैली,
काम नहीं आ रही अर्थ की, अब काली थैली|
चूहों पर है आँख लगाये, ताक रही बिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली|
उड़ा रही दिल्ली की खिल्ली||
युवाशक्ति ने सत्य वक्त का, कुछ पहचाना है,
कथनी को करनी में पूरा, कर दिखलाना है|
लालचियों के ऊपर रख दी, बर्फीली सिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली|
उड़ रही दिल्ली की खिल्ली||
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