Tuesday, June 30, 2015

लोकशाही ज़िन्दगी


जी रहा हूँ लोकशाही ज़िन्दगी श्रीमान जी,
हो चुकी आनन्दवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
नीतियों को जो सराहे अनुसरण करते हुये,
है वही सच्ची गवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
बीस घंटे कार्य करके सोचिये इस दौर में,
जी रहे कैसे सिपाही ज़िन्दगी श्रीमान जी?
मौन धारी हो गयी वो चाहती क्या देश की, 
देख ले पूरी तबाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
मान क्यों उसको मिले संसार में जो सर्वथा,
कर्म से करती कुताही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
कौन मानेगा भला वो शील साधक सोच है,
जो करे धन की उगाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
ये  जरूरी है नहीं वो श्रेष्ठता की मूर्ति हो,
लूटती  जो वाहवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|  
प्रश्न है जो राष्ट्र सेवा में लगे उनकी 'तुका',
क्या रही विज्ञान राही ज़िन्दगी श्रीमान जी?

Wednesday, June 24, 2015

न्याय की बातें


आग फिर घर में लगाता कौन है,
और आखिर में बुझाता कौन है?
धर्म यदि सद्कर्म की है रौशनी,
तो सदा नफ़रत सिखाता कौन है?
शक्ति का उद्देश्य है उपकार तो,
लूट की राहें बनाता कौन है?
सिर्फ कविता के अलावा विश्व में,
आदमीयत को बढ़ाता कौन है|
संसार में हारे-थकों को छोड़ के,
बोझ दुनियावी उठाता कौन है?
न्याय की बातें तुका सुनता यहाँ,
न्याय पीड़ित को दिलाता कौन है?

Thursday, June 18, 2015

दिल दुखी हो गया

दर्द इतना उठा दिल दुखी हो गया,
आपका साथ तो लाजिमी हो गया|
ये बड़ी बात है आज के दौर की,
मुस्कराना बड़ा आलसी हो गया|
लोग कहते जिसे थे लफंगा कभी,
वो सुना है बड़ा चौधरी हो गया|
मैं परेशान हूँ, सोचकर, देखकर,
हाजिरे दौर क्यों अजनबी हो गया?
लोग कहते रहे तंज कसते रहे,
क्या तुका प्यार का पारखी हो गया?

Wednesday, June 17, 2015

सत्य भी है नहीं


एक पल दूर दिल से गया भी नहीं,
पास प्रतिपल रहा वो मिला भी नहीं|
सत्य भी है नहीं कल्पना भी नहीं,
सिर्फ विश्वास है ये सजा भी नहीं|
ये मुहब्बत नहीं तो कहो क्या सखे!
दर्द हरदम जिया पर सहा भी नहीं|
वो मुझे देखता नित्य ही प्यार से, 
वो भला भी नहीं वो बुरा भी नहीं|
क्यों उसे शायरों- सा मिले मर्तबा, 
जो करे शब्द की साधना भी नहीं|
ये नहीं भूलना ज़िन्दगी मे 'तुका',
काव्य करता कभी याचना भी नहीं|

Tuesday, June 9, 2015

उदयास्त की काल्पनिक गाथा



हम सभी के साथ हँसते हैं नहीं लेकिन,
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
बहती नदी के नीर-जैसा हर जगह जाते,
बरसात जाड़ा ग्रीष्म से किंचित न घबराते|
पोषक प्रकृति की गोद में पलते हुये हम तो,
ज़िन्दगी की शुचि कहानी सर्वदा कहते|
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
इनके लिए उनके लिए जग में नहीं जीते,
विषपान गर अनिवार्य तो सबके लिए पीते|
अपने बराबर मानते जो सभी को मानते आये- 
मोह तृष्णा त्यागकर दुख-सुख रहे सहते| 
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
व्यापी यहाँ उदयास्त की ज्यों काल्पनिक गाथा,
मानव झुकाता आ रहा त्यों हर जगह माथा|
जिनकी कभी भी सत्य से अनुभूति हो जाती,
वे लहर के साथ तिनकों-सा नहीं बहते|
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|

Friday, June 5, 2015

सच कहोगे

सच कहोगे तो बड़े डंडे पड़ेंगे,
हर तरफ से सैकड़ों अंडे पड़ेंगे|
अर्थवादी दौर मे विद्वान को भी,
सेठ के घर पाथने कंडे पड़ेंगे|
राजनेता बन सकोगे शर्त है ये,
कुछ दिनों तक लादने झंडे पड़ेंगे|
आज उनके जोर का है शोर सुनिये,
देखना कल स्वर बहुत ठंडे पड़ेंगे|
मौत भी होती नहीं आसान प्यारे,
आखिरी मे लाश पर पंडे पड़ेंगे|
नामधारी ज्यों तुका होगे समझ लो,
आप के पीछे कई फंडे पड़ेंगे|