Tuesday, June 9, 2015

उदयास्त की काल्पनिक गाथा



हम सभी के साथ हँसते हैं नहीं लेकिन,
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
बहती नदी के नीर-जैसा हर जगह जाते,
बरसात जाड़ा ग्रीष्म से किंचित न घबराते|
पोषक प्रकृति की गोद में पलते हुये हम तो,
ज़िन्दगी की शुचि कहानी सर्वदा कहते|
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
इनके लिए उनके लिए जग में नहीं जीते,
विषपान गर अनिवार्य तो सबके लिए पीते|
अपने बराबर मानते जो सभी को मानते आये- 
मोह तृष्णा त्यागकर दुख-सुख रहे सहते| 
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|
व्यापी यहाँ उदयास्त की ज्यों काल्पनिक गाथा,
मानव झुकाता आ रहा त्यों हर जगह माथा|
जिनकी कभी भी सत्य से अनुभूति हो जाती,
वे लहर के साथ तिनकों-सा नहीं बहते|
हर किसी के दर्द में शामिल सदा रहते|

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