Tuesday, June 30, 2015

लोकशाही ज़िन्दगी


जी रहा हूँ लोकशाही ज़िन्दगी श्रीमान जी,
हो चुकी आनन्दवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
नीतियों को जो सराहे अनुसरण करते हुये,
है वही सच्ची गवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
बीस घंटे कार्य करके सोचिये इस दौर में,
जी रहे कैसे सिपाही ज़िन्दगी श्रीमान जी?
मौन धारी हो गयी वो चाहती क्या देश की, 
देख ले पूरी तबाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
मान क्यों उसको मिले संसार में जो सर्वथा,
कर्म से करती कुताही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
कौन मानेगा भला वो शील साधक सोच है,
जो करे धन की उगाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|
ये  जरूरी है नहीं वो श्रेष्ठता की मूर्ति हो,
लूटती  जो वाहवाही ज़िन्दगी श्रीमान जी|  
प्रश्न है जो राष्ट्र सेवा में लगे उनकी 'तुका',
क्या रही विज्ञान राही ज़िन्दगी श्रीमान जी?

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