Tuesday, October 30, 2012


हमारे पास भी जो रोकड़े थोड़े बहुत होते|
बगल में हाथ भी जोड़े खड़े थोड़े बहुत होते||

कहीं कोई अलौकिक बाप उनको भी मिला होता,
तभी तो शान से वो भी अड़े थोड़े बहुत होते|

चलाते वे नहीं डंडा कहीं पर भी बिना समझे,
विवेकी बैंत जो सिर पर पड़े थोड़े बहुत होते|

बिना कुछ शायरी के वाहवाही भी उन्हें मिलती,
नगीने गीत ग़ज़लों में जड़े थोड़े बहुत होते|

उन्हें तो मौन रहने की कला भी सीखनी पड़ती,
बने जो स्वार्थ से चिकने घड़े थोड़े बहुत होते| 

गरीबी ने कभी खट्टी कभी कड़वी सुनी सबकी,
अमीरी में पले होते कड़े थोड़े बहुत होते|

'तुका' उनको शहीदों-सा न मिलता मर्तबा कैसे,
कभी जो न्याय के हित में लड़े थोड़े बहुत होते|

Monday, October 29, 2012


लिख-पढ़कर भी गाली देना, सीख लिया कुछ लोगों ने|
छीन झपट कर घर भर लेना, सीख लिया कुछ लोगो ने||

कमजोरों का शोषण करके, ठगुओं-सी पहचान बनी, 
पर वीरों-सी मूछें टेना, सीख लिया कुछ लोगों ने|

हड्डी तोड़ परिश्रम करके, थोड़ी भूख मिटाने को,
बस दो मुठ्ठी मिले चबेना, सीख लिया कुछ लोगो ने|

जीवन के चौथेपन में भी, अपने ही हाथों के बल से ,
अपनी नाँव आप ही खेना, सीख लिया कुछ लोगों ने|

यदि होती है तो होने दो, बर्बादी की क्या चिंता, 
प्रगतिशील व्यवहार बढ़े ना,सीख लिया कुछ लोगों ने|

राजनीति करनी है जिनको, वे क्यों सच को देखेंगे,
मरती है मरने दो सेना, सीख लिया कुछ लोगों ने|

जो कुछ करना है कर डालो,रखना ध्यान 'तुका' इतना,
धर्म विरोधी शोर मचे ना, सीख लिया कुछ लोगों ने |

Saturday, October 27, 2012

भैया:-

सुनो! हमारे भैया ,
क्या कहती गौरैया?

उजड़ रहा है चमन हमारा,
कहीं न दिखता सहज सहारा,
पता नहीं क्यों सभी-सभी से-
अब तो करने लगे किनारा|
बहुत दुखी है हाल देखकर-

अपनी भारत मैया|
सुनो हमारे भैया--

आओ बैठो पास हमारे,
दूर न जाओ ह्रदय दुलारे,
रूठे रहना ठीक नहीं है -
आर्त भाव से वक्त पुकारे|
जो न समझते सच्चाई को-
उनका कौन बचैया|
सुनो! हमारे भैया,
कहती है गौरैया|

अगर पूर्ण करना है सपना,
आँख कान मुँह खोलें अपना,
लोकतंत्र के लिए न्याय का,
स्नेह सिक्त अपनायें नपना|
जो न चलते साथ समय के-
करते ताता-थैया|
सुनो! हमारे भैया,
कहती है गौरैया---

Sunday, October 7, 2012


पहचान बदल डाली तहरीर बदल डाली,
सच है कि जमाने की तस्वीर बदल डाली|

कुछ नेत्र यहाँ हैं जो सच देख रहे सबका,
सरकार छिन गई तो तकरीर बदल डाली|

जिनको न यहाँ मिलती थी प्याज नमक रोटी,
उनकी नये ख्याल ने तकदीर बदल डाली|

नफ़रत जिन्हें हमेशा उपहार में मिली है,
उन शील साधकों ने शमसीर बदल डाली|

यह बात जरा सी है पर है नजीर युग की,
श्रम ने अनीतियों की जंजीर बदल डाली|

हर भांति 'तुका' उनके संपर्क बनाये है ,
जलवायु की जिन्होंने तासीर बदल डाली|

ठग साठ साल बाद बेहतरीन हो गया|
परतंत्रता बिसार के स्वाधीन हो गया|| 

यह गूंजता सबाल हैं हर गाँव शहर में,
विद्वान क्यों समाज से दो तीन हो गया?

बम दाग कर चला गया वो ईश नाम से,
उसका किया कुकर्म भी आमीन हो गया|

अफसोस के सिवाय कोई है उपाय क्या,
गुरु का चरित्र देखिये गुणहीन हो गया|

अब राजनीति में यहाँ विद्रोह-सा मचा,
सदभाव शिखर पर छली आसीन हो गया|

सच है तुका कि आदमी की बात हो रही,
पर जो गरीब है वही तो दीन हो गया|

Tuesday, October 2, 2012

प्रशासन मुँह ढके रहता कुम्भ की नींद सोता है,
ठगों का बोलवाला है तपस्वी नित्य रोता है|

पता कुछ कीजिये स्वयमेव अपने गुप्त स्रोतों से-
तुम्हारी राजधानी में बड़ा अन्याय होता है|

न घर में प्यार मिलता है न शिक्षा पाठशाला में,
यहाँ कन्या विलखती है बालपन बोझ ढोता है|

चमन में गुल खिलाने का जिसे दायित्व सौपा था,

वही तो काटता तरूवर निरन्तर शूल बोता है|

सदा निस्वार्थ चिंतन से सजग अभ्यास करने से,
उसे मिलती सफलता भी नहीं जो धैर्य खोता है|

उसे पत्थर नहीं केवल कभी मोती मिला करते,
'तुका'साहित्य सागर में लगाता जो कि गोता है|