Tuesday, October 2, 2012

प्रशासन मुँह ढके रहता कुम्भ की नींद सोता है,
ठगों का बोलवाला है तपस्वी नित्य रोता है|

पता कुछ कीजिये स्वयमेव अपने गुप्त स्रोतों से-
तुम्हारी राजधानी में बड़ा अन्याय होता है|

न घर में प्यार मिलता है न शिक्षा पाठशाला में,
यहाँ कन्या विलखती है बालपन बोझ ढोता है|

चमन में गुल खिलाने का जिसे दायित्व सौपा था,

वही तो काटता तरूवर निरन्तर शूल बोता है|

सदा निस्वार्थ चिंतन से सजग अभ्यास करने से,
उसे मिलती सफलता भी नहीं जो धैर्य खोता है|

उसे पत्थर नहीं केवल कभी मोती मिला करते,
'तुका'साहित्य सागर में लगाता जो कि गोता है|

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