Saturday, August 29, 2015

काव्य प्रेरित मंच



काव्य प्रेरित मंच की रौनक बढ़ाने आ गये|
शब्द सुमनों से व्यवस्था को सजाने आ गये||

आप सब कहते रहे इस दौर का चिन्तक हमें,
गीतिका सुन लीजिये हम गुनगुगाने आ गये|

अर्थ लोलुप आधुनिक इस चमचमाहट ने यहाँ,
चेतना जो सुप्त की उसको जगाने आ गये|

स्वार्थ पोषित सोच से इंसानियत की राह में,
फाँसले जो बढ़ गये उनको घटाने आ गये|

ज्ञात हैं हमको हमारी मंजिलों के शीर्ष भी,
साथ लेकर आपको उन पर चढ़ाने आ गये|

तृप्त करती जो सभी को ज़िन्दगी की शक्ति से,
बंजरों को गोड़कर फसलें उगाने आ गये|

साथ में अब आप सब आ जाइये कहता तुका,
लोकतान्त्रिक बोध के परचम उठाने आ गये|

Friday, August 7, 2015

बुरे वक्त में


इधर भी उधर भी यही तो खबर है|
घिरा दहशतों बीच अब हर बसर है|
बढ़ी लूट हत्या अनय मानसिकता,
नही शांति से चल रहा ये नगर है|
बुरे वक्त में साथ देता न कोई,
वही भाग जाता मिला जो गनर है|
कभी भूलकर मत परेशान होना,
मुसीबत दिखाती प्रबोधन डगर है|
प्रभावित न होना चमकते घरों से,
प्रदूषित रही अर्थ लोलुप नज़र है|
ठगी के इरादे बदल दे 'तुका' जो,
उसे मान लेना शिवं काव्य स्वर है|

Monday, August 3, 2015

नहीं आदत भली होती


नहीं आदत भली होती किसी को अजमाने की,
रही है सोच चिंतन में नये अनुभव बताने की|
किसी के लोभ लालच से प्रभावित हो नहीं पाये, 
जिये हैं ज़िन्दगी खुलके सदा जगने-जगाने की|
लगे तस्वीर गलियों में बड़ी शोहरत मिले ऐसी, 
न फूहड़ गीतिका कहते कभी हँसने-हँसाने की|
बहुत थोड़े दिनों में ही विलग वे हो गये हमसे, 
रही अवधारणा जिनकी शपथ खाने-खिलाने की|
यही तो लोकशाही है सफलता हेतु जीवन में,
हमें अधिकार देती जो सुखद रस्ते बनाने की|
कभी इंसानियत से तो नहीं गिरना तुका अच्छा,
मगर होती बहुत अच्छी नियत उठने-उठाने की|