काव्य प्रेरित मंच की रौनक बढ़ाने आ गये|
शब्द सुमनों से व्यवस्था को सजाने आ गये||
आप सब कहते रहे इस दौर का चिन्तक हमें,
गीतिका सुन लीजिये हम गुनगुगाने आ गये|
अर्थ लोलुप आधुनिक इस चमचमाहट ने यहाँ,
चेतना जो सुप्त की उसको जगाने आ गये|
स्वार्थ पोषित सोच से इंसानियत की राह में,
फाँसले जो बढ़ गये उनको घटाने आ गये|
ज्ञात हैं हमको हमारी मंजिलों के शीर्ष भी,
साथ लेकर आपको उन पर चढ़ाने आ गये|
तृप्त करती जो सभी को ज़िन्दगी की शक्ति से,
बंजरों को गोड़कर फसलें उगाने आ गये|
साथ में अब आप सब आ जाइये कहता तुका,
लोकतान्त्रिक बोध के परचम उठाने आ गये|