Monday, August 3, 2015

नहीं आदत भली होती


नहीं आदत भली होती किसी को अजमाने की,
रही है सोच चिंतन में नये अनुभव बताने की|
किसी के लोभ लालच से प्रभावित हो नहीं पाये, 
जिये हैं ज़िन्दगी खुलके सदा जगने-जगाने की|
लगे तस्वीर गलियों में बड़ी शोहरत मिले ऐसी, 
न फूहड़ गीतिका कहते कभी हँसने-हँसाने की|
बहुत थोड़े दिनों में ही विलग वे हो गये हमसे, 
रही अवधारणा जिनकी शपथ खाने-खिलाने की|
यही तो लोकशाही है सफलता हेतु जीवन में,
हमें अधिकार देती जो सुखद रस्ते बनाने की|
कभी इंसानियत से तो नहीं गिरना तुका अच्छा,
मगर होती बहुत अच्छी नियत उठने-उठाने की|

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