Monday, September 30, 2013

क्षेत्रवाद परिवेश

जाति-धर्म के साथ बनाया, क्षेत्रवाद परिवेश|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

अपनी बोली अपनी भाषा, अपना किया विकास,
इस दूषित अपनेपन से तो, जन मन हुआ निराश|
अपनेपन की मनमानी का, प्रतिफल व्यापक क्लेश|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

हम भारत के भारतवासी, हम भारत के लोग,
सरल सहज वाणी विचार से, करते थे सहयोग|
इन जीवन मूल्यों को भूले, धनपशु हुये विशेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

लोकतंत्र का अर्थ न जाना, रहे लोक से दूर,
सुविधाभोगी शैतानों के, जिये क्षुद्र दस्तूर|
शील विनय से किया किनारा, अपनाया आवेश|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

हमसे अच्छा और न कोई, ऐसा घृणित प्रचार,
पाखण्डी चिंतन में आया, किंचित नहीं सुधार|
महिमामंडित करते रहते, सामन्ती अवशेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

राजनीति का लेकर झण्डा, माँग रहे हैं वोट,
धनकुबेर कुछ लुटा रहे हैं, इन पर काले नोट|
काला धन सफ़ेद करने को, होने लगा निवेश|
बिखेरा इंसानों में द्वेष|
बिखेरा इंसानों में द्वेष||

Wednesday, September 25, 2013

चरम है|

तुम्हारा रहम है तुम्हरा करम है,
हमें प्यार करना तुम्हारा धरम है|

बड़े लोग हैं पर घरौंदा किसी का,
उन्हें छीनने में न आती शरम है|

उन्हें क्या पता भूख की मार कैसी, 
हमेशा रही जेब जिनकी गरम है|

जिन्होंने यहाँ जुल्म ढाए हमेशा, 
बुरी बात उनकी लगती नरम है|

सभी के लिए क्यों खुला वो रहे जो,
बनाया किसी के हितों का हरम है|

'तुका' प्राण जो और के हेतु दे दे,
मुहब्बत भरा मानिये वो चरम है|

Friday, September 6, 2013

हे! मानवता के सूत्रधार|


हे! मानवता के सूत्रधार|
जनजीवन के उत्कर्ष हेतु, दे दिये सुहाने नवविचार|
हे! मानवता के सूत्रधार|
हे! मानवता के सूत्रधार||

जीवन में लोकतंत्र विधि का,
परिपालन अपने आप किया|
संवर्धन के सन्मार्ग रचे,
भूलों पर पश्चाताप किया||
विपरीत दशाओं में देता, सद्शक्ति अपरिमित सदाचार|
हे! मानवता के सूत्रधार|
हे! मानवता के सूत्रधार||

क्या उचित और अनुचित होता,
यह भलीभाँति समझाया है| 
वह मानव क्या जो मानव का,
उपकार नहीं कर पाया है||
नित चिंतन मनन विवेचन से, कर लिया ह्रदय को निर्विकार|
हे! मानवता के सूत्रधार|
हे! मानवता के सूत्रधार||

परहित में अपना हित रहता,
यह सीधी सरल कहानी है|
जो सबको आकर्षित करती,
वह नैतिक मीठी वाणी है||
वह असफल कभी न होता जो, निज भूलों का करता सुधार|
हे! मानवता के सूत्रधार|
हे! मानवता के सूत्रधार||