Tuesday, October 30, 2012


हमारे पास भी जो रोकड़े थोड़े बहुत होते|
बगल में हाथ भी जोड़े खड़े थोड़े बहुत होते||

कहीं कोई अलौकिक बाप उनको भी मिला होता,
तभी तो शान से वो भी अड़े थोड़े बहुत होते|

चलाते वे नहीं डंडा कहीं पर भी बिना समझे,
विवेकी बैंत जो सिर पर पड़े थोड़े बहुत होते|

बिना कुछ शायरी के वाहवाही भी उन्हें मिलती,
नगीने गीत ग़ज़लों में जड़े थोड़े बहुत होते|

उन्हें तो मौन रहने की कला भी सीखनी पड़ती,
बने जो स्वार्थ से चिकने घड़े थोड़े बहुत होते| 

गरीबी ने कभी खट्टी कभी कड़वी सुनी सबकी,
अमीरी में पले होते कड़े थोड़े बहुत होते|

'तुका' उनको शहीदों-सा न मिलता मर्तबा कैसे,
कभी जो न्याय के हित में लड़े थोड़े बहुत होते|

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