Monday, September 24, 2012


वह तो रगड़-रगड़ कड़-कड़ -सा,हो तत्क्षण जाता है|
ह्रदय- परिंदा नीलगगन में,जब प्रिय! उड़ जाता है||

उचित यही है इस तन-मन को,नहीं बैठने देना,
जबतक साँस चले अंतर की,तबतक नौका खेना|
बिना किये व्यायाम वदन तो,स्वतः अकड़ जाता है|
ह्रदय- परिंदा नीलगगन में,जब प्रिय! उड़ जाता है||

यह कोई उपलब्धि नहीं है, सौ वर्षों तक जीना,
विस्तर ऊपर पड़े- पड़े ही, नीर माँगकर पीना|
बहुत व्यथित रहता वह जिसका,बाग उजड़ जाता है|
ह्रदय- परिंदा नीलगगन में,जब प्रिय! उड़ जाता है||

कहने करने में जब कोई, एक्य नहीं रहता है,
तब अभ्यंतर नित्य ग्लानि की,अग्नि बीच दहता है|
बिना उचित जलवायु बीज तो,बहुधा सड़ जाता है|
ह्रदय- परिंदा नीलगगन में,जब प्रिय! उड़ जाता है||

जग में दौड़ हो रही जतना,इसमें तुम दौड़ोगे,
उतने उच्च शिखर पर अपने-आप वहाँ पहुँचोगे|
वह प्रतिभागी सफल न होता,जो कि पिछड़ जाता है|
ह्रदय- परिंदा नीलगगन में, जब प्रिय! उड़ जाता है||

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