Tuesday, September 18, 2012


आदमी की किस तरह पीड़ा कहें अब आप से|
जल रहे इन्सान प्यारे! वेदना के ताप से ||

विश्वास बोझिल हो गये,अरमान उन के सो गये,
देख निबलों की व्यथा को,दुख-दर्द भंजक रो गये|
सुख-चैन के साधन सभी,उड़ गये हैं भाप से |
जल रहे इन्सान प्यारे! वेदना के ताप से ||

करुणा-दया के गेह में,आनंद -मूलक देह में,
अपयश समाता ही गया,अभिनय-प्रदर्शित-स्नेह में|
बहता हुआ जल नेत्र का,मापा गया कब नाप से |
जल रहे इन्सान प्यारे! वेदना के ताप से ||

प्रतिकूल धारा में बहा,शिव सत्य का साथी रहा,
सत को जिया,सत ही किया,भोगा हुआ अनुभव कहा|
स्वर दिया उनको सदा जो हैं व्यथित अभिशाप से|
जल रहे इन्सान प्यारे! वेदना के ताप से |

पूजा घरों से दूर हैं,पर,प्यार से भरपूर हैं,
नित ज्ञान के सहयोग से,सब दर्प करते चूर हैं|
हम जन्म से ही संत हैं,क्या अर्थ हमको जाप से|
जल रहे इन्सान प्यारे! वेदना के ताप से ||
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