Thursday, April 24, 2014

मसीहा सेवकाई का

युगों से राजधानी की वसीयत आपने पायी,
विषैली सोच से उपजी नसीहत आपने पायी,

कराती आदमी से आदमी को दूर जो बोली-
वही शैतानियत प्रेरित शरारत आपने पायी|

न अपने आपको मानो मसीहा सेवकाई का- 
भलों को रौंदने वाली तबीयत आपने पायी|

नहीं जाने सदाशयता दया करुणा भलाई जो, 
वही उदण्डता ध्वंसक जहालत आपने पायी| 

सभी समकक्ष हैं आज़ाद भारत के सभी वासी,
इन्हें क्यों गैर कहने की हमाक़त आपने पायी?

इसे बर्बाद मत करिये धरोहर है बुजुर्गों की, 
हिफ़ाज़त कीजिये इसकी अमानत आपने पायी|

तुका ने है कहा इतना सदा बेखौफ दुनिया से,
नहीं सहकार करने की रिफाक़त आपने पायी|

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