Sunday, April 13, 2014

दिल्ली दिखे न दूर

लोकतंत्रीय इस आँगन के, बदल रहे दस्तूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर||

कल तक नाम नहीं लेते थे, जो बाबा तेरा,
वे हम सबके के यहाँ जमाने, लगे आज डेरा|
संविधान के आगे उनका, दर्प हुआ काफूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर|| 

लूटतन्त्र के गोरखधंधे, जड़ता पाखण्डी,
छोड़ रहे हथियार द्वेष के, शोषक उद्दंडी| 
वोट शक्ति ने कर डाला है, छल-बल चकनाचूर, 
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर|| 

खोल दिये प्रेरक दरवाजे, शिक्षा ने सारे,
मुश्किल नहीं तोड़ने लगते, अब नभ के तारे|
सहज संघठन संघर्षों से, दिल्ली दिखे न दूर,
पसरने लगा प्रेम का नूर|
पसरने लगा प्रेम का नूर||

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