क्रूर पहचान काली मिटेगी नहीं,
दुष्ट के हेतु ताली बजेगी नहीं|
रेत के ढेर से स्वर्ण जैसी कभी,
मूर्ति सुन्दर निराली बनेगी नहीं|
सींचने मात्र से तो किसी हाल में,
वृक्ष की शुष्क डाली फलेगी नहीं|
लूटती जो मतों को रही देश में,
वो लुटेरी दुनाली चलेगी नहीं|
चेतना की खुली घोषणा है 'तुका',
अर्थ की दाल ख्याली गलेगी नहीं|
दुष्ट के हेतु ताली बजेगी नहीं|
रेत के ढेर से स्वर्ण जैसी कभी,
मूर्ति सुन्दर निराली बनेगी नहीं|
सींचने मात्र से तो किसी हाल में,
वृक्ष की शुष्क डाली फलेगी नहीं|
लूटती जो मतों को रही देश में,
वो लुटेरी दुनाली चलेगी नहीं|
चेतना की खुली घोषणा है 'तुका',
अर्थ की दाल ख्याली गलेगी नहीं|
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