Wednesday, April 9, 2014

सौहार्द वाटिका

पग-पग पर जो किये जा रहा, जन-मन का अपमान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

मानव मूल्यों का हत्यारा, छल बलियों का बना दुलारा,
शील विनय करुणा के घर में, बैर-भाव का रोग उभारा|
जिसके भय से मौन हो गये, बड़े-बड़े विद्वान,
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान|| 

जेठ धूप जैसा वह फैला, दल-दल में छितराये मैला,
बाजारों ने काले धन का, उसके लिए उड़ेला थैला|
स्वार्थ शक्तियाँ चला रही हैं, जिसका छल अभियान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

चिंतन में हैं खींचातानी, करता रहता है मनमानी,
लोकतंत्र के ऊपर हँसता, नहीं आचरण है इन्सानी|
चाह रहा सौहार्द वाटिका, जो करना वीरान, 
उसे अब कहिये तो शैतान| 
उसे अब कहिये तो शैतान||

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