पग-पग पर जो किये जा रहा, जन-मन का अपमान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
मानव मूल्यों का हत्यारा, छल बलियों का बना दुलारा,
शील विनय करुणा के घर में, बैर-भाव का रोग उभारा|
जिसके भय से मौन हो गये, बड़े-बड़े विद्वान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
जेठ धूप जैसा वह फैला, दल-दल में छितराये मैला,
बाजारों ने काले धन का, उसके लिए उड़ेला थैला|
स्वार्थ शक्तियाँ चला रही हैं, जिसका छल अभियान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
चिंतन में हैं खींचातानी, करता रहता है मनमानी,
लोकतंत्र के ऊपर हँसता, नहीं आचरण है इन्सानी|
चाह रहा सौहार्द वाटिका, जो करना वीरान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
मानव मूल्यों का हत्यारा, छल बलियों का बना दुलारा,
शील विनय करुणा के घर में, बैर-भाव का रोग उभारा|
जिसके भय से मौन हो गये, बड़े-बड़े विद्वान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
जेठ धूप जैसा वह फैला, दल-दल में छितराये मैला,
बाजारों ने काले धन का, उसके लिए उड़ेला थैला|
स्वार्थ शक्तियाँ चला रही हैं, जिसका छल अभियान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
चिंतन में हैं खींचातानी, करता रहता है मनमानी,
लोकतंत्र के ऊपर हँसता, नहीं आचरण है इन्सानी|
चाह रहा सौहार्द वाटिका, जो करना वीरान,
उसे अब कहिये तो शैतान|
उसे अब कहिये तो शैतान||
No comments:
Post a Comment